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छठा भव-धनसेठ
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छठा भव वनजंघ और श्रीमतीके जीव उत्तर कुरुक्षेत्रमें जुगलियारूपमें उत्पन्न हुए। ठीक ही कहा है कि
"एक चिताविपनानों गतिरेका हि जायते।"
[समान विचार करते हुए मरनेवालोंकी गति भी एकही होती है।] (७१६)
सातवाँ भव उस क्षेत्रके योग्य प्रायुको पूर्ण कर मरे और सौधर्म देवलोकमें स्नेहशील देवता हुए और बहुत समयतक स्वर्गके सुख भोगे। (७१७)
आठवाँ भव देव आयु समाप्त होनेपर, गरमीसे जैसे वरफ गलता है वैसेही वनजंघका जीय यहाँसे ज्यवा और चूद्वीपके विदेहक्षेत्रमें, तितिप्रतिष्ठित नगर में सुविधि वैद्यके घर पुत्ररूपमें उत्पन्न हुआ। नाम जीवानन्द रखा गया। उसी दिन उस शहरमें, धर्मके शरीरधारी चार अंगोंकी तरह, दूसरे चार बालक जन्मे। पहला इशानचंद्र राजाके घर कनफरती नामकी नीसे महीधर नामका पुन हुआ। दूसरा सुनातीर मंत्रीकी लरमो नामक सीसे लक्ष्मीपुत्रके समान सुयति नामका पुत्र हुआ। तीसरा सागरदरा सेठको अभवमती नामकी त्रीसे पूर्णभद्र नामफा पुत्र हुमा । और पीया धनशेट्रोफी शीलमती नामी श्रीसे
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