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८.] त्रियष्टि शलाका पुग्यचरित्रः पर्व १. सर्ग १.
मित्रांस गली परिहासकी बान सुनकर दुदानकुमार लनित दृश्रा और विक्री हुई चीजोमसे जैस बची बुची चीजें रहती हैं. वैसा होकर बह वहाँसे चला गया। (६६०-६७०)
थोड़ी देर बाद उस जगह, लोहार्गलपुरसे श्राया हुश्रा बन्नजंघनुमार भी पाया । यह चित्रपटमें लिखे हुए चरित्रको देखकर मुछिन होगया। पंखाचं हवा कीगई और पानी छींटा गया तब वह मूछा जागा। पाठे, वह न्वर्गहारो भाया हो इस तरह उसे जानिम्मरगा डान हुया"
उनु ममय पंडिनाने पूछा, "ह कुमार ! पटको देखकर तुमको मुछी श्यों श्रागई थी ?" ___ बनर्जयने उत्तर दिया, हमनें ! मेरे पूर्वजन्मका हाल, मेरी श्री नहिन, हम पटमें चित्रिन है। उसे देखकर मुझे मृा श्रागई। यह श्रीमान ईशानकल्य है। इसमें यह श्रीप्रम विमान है। यह मैं ललितांगदेव हूँ और यह मेरी देवी स्वयंप्रभा है। चाताखंड नंदीग्राम महादरिद्री घर यह निनामिका नामकी लड़की है। वह इस अंबगनिन्लक नामपनपरन्नड़ी है और उसने युगंधर नामक मुनिसे अनशनत्रन ग्रहण किया है। यहाँ मुनमें श्रासक्त इमन्त्रीका में यात्मदर्शन करान पाया हूँ। फिर वह इस जगह मरकर स्वयंप्रभा नामक मंग देवी हुई है। यहाँ मैं नंदीश्वद्धीपक जिनत्रियों की पूजा करने में तत्पर हुश्रा हूँ।
और वहीं दूसरे तीर्थों में जातं समय मेंग च्यवन हुया है। एकाकिनी, दीन और रंक समान बनी हुई यह स्वयंप्रभा यहाँ पाई है। गला गन्याल है। और.बही मरी पूर्वमयकी प्रिया है! बहन्छा बहीं है। और मुझे विश्वास है कि उसने अपने