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आत्म-विलाम]
[2 कटाक्षरो नृत्य करता रहता है और नियमिन समय पर चार भाटेके रूपमे उसकी लीलारा तश्य दिग्गला जाना बाकाग को शुन्यता, वायुको पन्दता, अग्निको उपाता. जनको वता. पृथ्वाको कठोरता उसकी ही प्रदान की हुई हैं । मागंश, प्रभा. विष्णु तथा रुद्र जिसके इशारेमे मंमारकी उत्पत्ति, स्थिति तथा ला-क्रियाको करते हैं, उम प्रकृति-माताक अनुकूल चल कर ही मनुष्य अपने आपको प्रतिके बन्धनमे छुड़ा सकता है. अन्यथा इसके बन्धनसे छूटना असम्भव है। जिस प्रकार किसी नदीके उपरसे रेलगाडी निकालनी मंजूर हो तो पानी को वहावका रास्ता दकर और पुल बनाकर उनके अनुयूल चलकर ही निकाली जा सकती हैं। जलका प्रवाह रोक कर हजार उपाय कर देखो, क्या कार्यसिद्धि की जा सकती है ? कि इसी प्रकार मनुष्य प्रकृतिके अनुकूल चलकर ही प्रकृतिके बन्धन से छूट सकता है। ___ यहाँ प्रश्न होता है कि प्रकृतिकी अनुकूलता किस्म है और प्रकृति चाहती क्या है ? विचारसे देखा जाता है कि जब जीव किसी प्रकारसे धन-पुत्रादि वाह्य पदार्थीको पकडको प्रहरण करता है, अथवा शरीरसम्बन्धी मान-वडाईकी पकड़ करता है, उसी समय उसका वातावरण दुख, शोक और चिन्तासे परिपूर्ण होजाता है। पकड़के कारण ही क्या वर्तमान और क्या भावी दोनों काल ही इस जीवके विरुद्ध कटिबद्ध होकर खड़े होजाते हैं। वर्तमानमे तो अनेक भूतसमुदाय इस जीवके प्रति पकडके कारण शत्रुतामें वरतने लगते हैं और भविष्यत् मे उन कर्मोके फलरूपमें आधिदैविक शक्ति इस जीवके विरोध में दुःखमय फलभोग भुगानेके लिये, सशस्त्र खड़ी होजाती है। वर्तमानमें जो भी दुःख जीवको प्राप्त होरहा है, उसके मूलमे निर्विवादरूपसे एकमात्र कारण यही होसकता है कि इस जोव