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'प्रमु सर्वशक्तिमान है। ऐसा प्रत्येक समय और प्रत्येक विषयमें अनुभव हो सके, तमो श्रात्मानुभवका प्रारम्भ हुआ है, ऐसा मानना चाहये। शास्त्रार्थ महारथि पपडितरोज श्रीवेणीमधवजी शास्त्री, घटिका
शतक शतावधान संस्कृताशु कवि कविचक्रवर्ती कशीसे लिखते हैं.
आपका लिखा हुआ आत्माविलास नामका दार्शनिक रहस्य प्रकाश देखकर हदय अत्यन्न प्रसन्न हुआ। आपने बहुत परिश्रमसे इस दर्शन-शखको तैयार किया है। आपने इस पुस्तकको विद्यावलसे नहीं लिखा, किन्तु विद्या-ज्ञान दोनों घलसे लिखा है, जैसा कि तुलसीदास स्वामीका, रामायण दोनों वलसे है। लोकमान्य तिलकके प्रवृत्तिमार्गको आपने प्रमाण व युक्तियोंसे ऐसा खण्डन किया है कि अभूतपूर्व कल्पना आपने किया है। इस पुस्तकसे देशका महान कल्याण है। व्याकरण-न्यायादि शास्त्रों में हम भी बहुत टीकाएँ लिख चुके हैं। लेखरहस्थका हमको अनुभव है आपका सुलेख हमको मुग्धकर आपके दर्शनकी इच्छा करा रहा है। श्रीयुद हनुमानप्रसादजी पोदारसम्पादक 'कल्याण गोरखपुर लिखते हैं:
यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि प्रस्तुत ग्रन्थ आध्यात्मिक विषयको खानि है। और यदि इसका विस्तृत रूपसे प्रचार किया जाय तो निश्चय ही यह पाठकोंको अत्यन्त
आध्यात्मिक लाम प्रदान करेगा। मनकी एकाग्रताका स्वरूप और तत्सम्बन्धी
विभिन्न विचार व प्रार्थनाएँ यह पुस्तक अलग भी छपाई गई है मूल्या