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गुणादिपरिचय । करनेवाले हुए हैं। नगर ताल्लुकेके ३५ वें शिलालेखमें, भद्रबाहुके बाद कलिकालके प्रवेशको सूचित करते हुए, आपको 'कलिकालगणधर' और 'शास्त्रका लिखा है । अस्तु ।
समंतभद्रने जिस स्याद्वादशासनको कलिकालमें प्रभावित किया है उसे भट्टाकलंकदेवने, अपने उक्त पद्यमे, ' पुण्योदधि' की उपमा दी है । साथ ही, उसे 'तीर्थ' लिखा है और यह प्रकट किया है कि वह भव्यजीवोंके आन्तरिक मलको दूर करनेवाला है और इसी उद्देश्यसे प्रभावित किया गया है । भट्टाकलंकका यह सब लेख समंतभद्रके उस वचनतीर्थको लक्ष्य करके ही लिखा गया है जिसका भाष्य लिखनेके लिये आप उस वक्त दत्तावधान थे और जिसके प्रभावसे 'पात्रकेसरी'
जैसे प्रखर तार्किक विद्वान् भी जैनधर्मको धारण करनेमें समर्थ हो सके हैं। ___ भट्टाकलंकके इस सब कथनसे समंतभद्रके वचनोंका अद्वितीय माहात्म्य प्रकट होता है । वे प्रौढत्व, उदारता और अर्थगौरवको लिये हुए होनेके अतिरिक्त कुछ दूसरी ही महिमासे सम्पन्न थे । इसीसे बड़े बड़े आचार्यों तथा विद्वानोंने आपके वचनोंकी महिमाका खुला गान किया है। नीचे उसीके कुछ नमूने और दिये जाते हैं, जिनसे पाठकोंको समंतभद्रके वचनमाहात्म्यको समझने
और अनेक गुणोंका विशेष अनुभव प्राप्त करनेमें और भी ज्यादह सहायता मिल सकेगी। साथ ही, यह भी मालूम हो सकेगा कि समं
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१ यह शिलालेख शक सं० ९९९ का लिखा हुआ है ( E.C., VIII.) इसका अंश समयनिर्णयके अवसर पर उद्धृत किया जायगा।
२ यह विद्यानन्द स्वामीका नामान्तर है। आप पहले अजैन थे, 'देवागम' को सुनकर आपकी श्रद्धा वदल गई और आपने. जैनदीक्षा धारण की।