________________
२९
गुणादिपरिचय । कोई मनुष्य अहंकारके वश होकर अथवा नासमझांके कारण कुछ विरोध खड़ा करता था तो उसे शीघ्र ही निरुत्तर हो जाना पड़ता था। इस तरह पर, समंतभद्र भारतके पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, प्रायः सभी देशोंमें, एक अप्रतिद्वंद्वी सिंहकी तरह क्रीडा करते हुए, निर्भयताके साथ वादके लिये घुमे हैं। एक बार आप घूमते हुए 'करहाटक' नगरमें भी पहुँचे थे, जिसे कुछ विद्वानोंने सतारा जिलेका आधुनिक 'के-हाड या कराड़' और कुछने दक्षिणमहाराष्ट्रदेशका 'कोल्हापुर' नगर बतलाया है, और जो उस समय बहुतसे भटों ( वीर योद्धाओं) से युक्त था, विद्याका उत्कट स्थान था और साथ ही अल्प विस्तारवाला अथवा जनाकीर्ण था । उस वक्त आपने वहाँके राजा पर अपने वादप्रयोजनको प्रकट करते हुए, उन्हें अपना तद्विषयक जो परिचय, एक पद्यमें, दिया था वह श्रवणबेलगोलके उक्त ५४ वें शिलालेखमें निम्न प्रकारसे संग्रहीत है--
पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे मेरी मया ताडिता पश्चान्मालवसिन्धुठक्कविषये कांचीपुरे वैदिशे । प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुमटं विद्योत्कटं संकटं
वादार्थी विचराम्यहं नरपते शार्दूलविक्रीडितं ॥ १ देखो, मिस्टर एडवर्ड पी• राइस बी. ए. रचित 'हिस्टरी आफ कनडीज लिटरेचर' पृ. २३ ।
२ देखो, मिस्टर बी. लेविस राइसकी ' इंस्क्रिप्शन्स ऐट् श्रवणबेल्गोल' नामकी पुस्तक, पृ० ४२; परंतु इस पुस्तकके द्वितीय संशोधित संस्करणमें, जिसे आर० नरसिंहाचारने तैय्यार किया है, शुद्धिपत्रद्वारा ' कोल्हापुर' के स्थानमें 'कहाड' बनानेकी सूचना की गई है।
३ यह पद्य ब्रह्म नेमिदत्तके 'आराधनाकयाकोष ' में भी पाया जाता है परंतु यह ग्रंथ शिलालेखसे कई सौ वर्ष पीछेका बना हुआ है।