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स्वामी समंतभद्र।
ये ही सब उल्लेख हैं जो अभीतक इस ग्रंथके विषयमें हमें उपलब्ध हुए हैं। और प्रत्येक उल्लेख परसे जो बात जितने अंशोंमें पाई जाती है उसपर यथाशक्ति ऊपर विचार किया जा चुका है। हमारी रायमें, इन सब उल्लेखोंपरसे इतना जरूर मालूम होता है कि 'गंधहस्ति-महाभाष्य' नामका कोई ग्रंथ जरूर लिखा गया है, उसे 'सामन्तभद्र-महाभाष्य' भी कहते थे और खालिस 'गंधहस्ति' नामसे भी उसका उल्लेखित होना संभव है । परन्तु वह किस ग्रंथपर लिखा गया-कर्मप्राभतके भाष्यसे भिन्न है या अभिन्न-यह अभी सुनिश्चितरूपसे नहीं कहा जा सकता । हाँ, उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र'पर उसके लिखे जानेकी अधिक संभावना जरूर है परन्तु ऐसी हालतमें, वह अष्टशती और राजवार्तिकके कर्ता अकलंकदेवसे पहले ही नष्ट हो गया जान पड़ता है। पिछले लेखकोंके ग्रंथोंमें महाभाष्यके जो कुछ स्पष्ट या अस्पष्ट उल्लेख मिलते हैं वे स्वयं महाभाष्यको देखकर किये हुए उल्लेख मालूम नहीं होते-बल्कि परंपरा कथनोंके आधारपर या उन दूसरे प्राचीन ग्रंथोंके उल्लेखोंपरसे किये हुए जान पड़ते हैं जो अभी तक उपलब्ध नहीं हुए । उनमें एक भी ऐसा उल्लेख नहीं है जिसमें, 'देवागम' जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थके पोंको छोड़कर, महाभाष्यके नामके साथ उसके किसी वाक्यको उद्धृत किया हो। इसके सिवाय, 'देवागम' उक्त महाभाष्यका आदिम मंगलाचरण है यह बात इन उल्लेखोंसे नहीं पाई जाती। हो, वह उसका एक प्रकरण जरूर हो सकता है; परन्तु उसकी रचना 'गंधहस्ति' की रचनाके अवसरपर हुई
१ समन्तभद्रका 'कर्मप्राभृत' सिद्धान्तपर लिखा हुआ भाष्य भी उपलब्ध नहीं है। यदि वह सामने होता तो गंधहस्ति महाभाष्यके विशेष निर्णय में उससे बहुत कुछ सहायता मिल सकती थी।