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समय-निर्णय ।
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इस बातकी स्पष्ट घोषणा की गई है कि सिंहनन्दि समन्तभद्रके बाद हुए हैं । अस्तु; ये सिंहनन्दि गंगवंशके प्रथम राजा 'कोंगुणिवर्मा के समकालीन थे और यह बात पहले भी जाहिर की जा चुकी है । सिंहनन्दिने गंगराज्यकी स्थापनामें क्या सहायता की थी, इसका कितना ही उल्लेख अनेक शिलालेखोंमें पाया जाता है, जिसे यहाँ पर उद्धृत करनेकी कोई जरूरत मालूम नहीं होती। यहाँ पर हम सिर्फ इतना ही प्रकट कर देना उचित समझते हैं कि कोंगुणिवर्माका समय ईसाकी दूसरी शताब्दी माना गया है। उनका एक शिलालेख शक सं० २५ का 'नंजनगूढ' ताल्लुकेसे उपलब्ध हुआ है, जिससे मालूम होता है कि कोंगुणिवर्मा वि० सं० १६० (ई० सन् १०३) में राज्यासन पर आरूढ थे । प्रायः यही समय सिंहनन्दिका होना चाहिये, और इस लिये कहना चाहिये कि समन्तभद्र वि० सं० १६० से पहले हुए हैं, परंतु कितने पहले, यह अप्रकट है। फिर भी पूर्ववर्ती मान लेने पर कमसे कम ३० वर्ष पहले तो समन्तभद्रका होना मान ही लिया जा सकता है क्योंकि ३५ वें शिलालेखमें सिंहनन्दिसे पहले आर्यदेव, वरदत्त और शिवकोटि नामके तीन आचार्योंका और भी उल्लेख पाया जाता है, जिनके लिये १०-१० वर्षका समय मान लेना कुछ अधिक नहीं है। इससे समन्तभद्र विक्रमको प्रायः दूसरी शताब्दीके पूर्वार्धके विद्वान् मालूम होते हैं। और यह समय उस समयके साथ मेल खाता
१ इस शिलालेखका नंबर ११० और आद्यांश निम्न प्रकार है
"स्वस्ति श्रीमस्कोगुणिवर्मधर्ममहाधिराज प्रथम गंगस्य वर्ग शकवर्षगतेषु पंचविंशति २५ नेय शुभक्ति संवत्सरसु फाल्गुन शुद्ध पंचमी शनि रोहणि......।
-एपि० कर्णा०, जिन्दरी, सन् १८९४