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स्वामी समंतभद्र।
जो विद्वान् सूचित किया है उसका समर्थन इसी नगर ताल्लुकेके दूसरे शिलालेखोंसे भी होता है जिनके नम्बर ३६ और ३७ हैं । और जो क्रमशः ९९९,१०६९ शक संक्तोंके लिखे हुए हैं । यथा"....श्रुतकेवलिगल एनिसिद (एनिप ३७) भद्रबाहुस्वामिगलू (गलंग ३७) मोदलागि पलम्बर् (हलम्बर ३७) आचार्य पोदिम्बलियं समन्तभद्रस्वामिगलू उदपिसिदर् अवर अन्वयदोल (अनन्तरं ३७) गंगराज्यमं माडिद सिंहनन्धाचार्यर अवरि....- "
इसके सिवाय, दूसरा ऐसा कोई भी शिलालेख देखनेमें नहीं आता जिसमें, समन्तभद्र और सिंहनन्दि दोनोंका नाम देते हुए, सिंहनन्दिको समन्तभद्रसे पहलेका विद्वान् सूचित किया हो अथवा कमसे कम समन्तभद्रसे पहले सिंहनन्दिके नामका ही उल्लेख किया हो। ऐसी हालतमें समन्तभद्रके सिंहनन्दिसे पूर्ववर्ती विद्वान् होनेकी संभावना अधिक पाई जाती है । यदि वस्तुस्थिति ऐसी ही हो तो इससे लेविस राइस साहबके उस अनुमानका समर्थन होता है जिसे उन्होंने केवल मल्लिषेणप्रशस्तिमें इन विद्वानोंके आगे पीछे नामोल्लेखको देखकर ही लगाया था और इसलिये जो सदोष तथा अपर्याप्त था । इन बौदको मिले हुए शिलालेखों में 'अवरिं' 'अवर अन्वयदोलू' और 'अवर अनन्तरं' शब्दोंके द्वारा
१ यह ३६ वें शिलालेखका अंश है, ३७ में भी यह अंश प्रायः इसी प्रकारसे दिया हुआ है, जहाँ कुछ भेद है उसे कोष्टकमें दिखलाकर उसपर नम्बर ३७ दे दिया गया है।
२ मलिषेमप्रशस्ति श्रवणबेल्गोलका ५४ वा शिलालेख है जो सन् १८८९ में प्रकाशित हुआ था, और नगर ताल्लु केके उक शिलालेख सन् १९०४ में प्रकाशित हुए हैं। वे सन् १८८९ में राइस साहबके सामने मौजूद नहीं थे।