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स्वामी समन्तभद्र। तथा आक्षेपोंका अच्छी तरहसे निरसन न कर दिया जाय तब तक केवल उसीके आधार पर किसी आचार्यके समयको दृढताके साथ सत्य प्रतिपादन नहीं किया जासकता; फिर भी उसमें उल्लेखित अनेक समयोंके सत्य होनेकी संभावना है, और इसलिये हमें यह देखना चाहिये, कि कुन्दकुन्दके उक्त समयकी सत्यतामें प्रकारान्तरसे कोई बाधा आती है या कि नहीं___ यह बात मानी हुई है और इसमें कोई मतभेद भी नहीं पाया जाता कि वीरनिर्वाणसे ६८३ वर्षतक अंगज्ञान रहा, उसके बाद फिर कोई अंगज्ञानी-एक भी अंगका पाठी-नहीं हुआ, और कुन्दकुन्दाचार्य अंगज्ञानी नहीं थे। इन्द्रनन्दिश्रुतावतारके कथनानुसार कुन्दकुन्द अन्तिम आचारांगधारी लोहाचार्यकी कई पीढ़ियोंके बाद हुए हैं जिन पीढ़ियोंके लिये ६०-८० वर्षके समयकी कल्पना कर लेना कुछ बेजा नहीं है। और प्राकृत पट्टावलीके अनुसार, भूतबलिको अन्तिम एकांगधारी मान लेनेपर कुन्दकुन्दका समय ६८३ से २०-३० वर्ष बादका ही रह जाता है । परन्तु दोनों ही दृष्टियोंको संक्षिप्त करके यदि यही मान लिया जाय कि कुन्दकुन्द अन्तिम एकांगधारी ( लोहाचार्य या भूतबलि ) के ठीक बाद हुए हैं तो यह मानना होगा कि वे वीरनिर्वाणसे ६८३ वर्ष बाद हुए हैं। और ऐसी हालतमें, जैसा कि ऊपर जाहिर किया गया है, कुन्दकुन्द किसी तरह भी विक्रमकी पहली शताब्दीके विद्वान् सिद्ध नहीं होते। हाँ यदि यह मान लिया जावे कि कुन्दकुन्द, अंगधारी न होते हुए भी, एकांगधारियोंसे पहले हुए हैं तो उनका समय विक्रमकी पहली शताब्दी बन सकता है। महाशय चक्रवर्ती भी ऐसा ही मानकर चले मालूम होते हैं, जिसका खुलासा इस प्रकार है