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समय-निर्णय।
खास सहायता प्रदान की हो । परन्तु उसे बिलकुल ही स्वयं रचकर दे देनेकी बात कुछ जीको नहीं लगती; क्योंकि थिरुवल्लुवर यदि इतने अयोग्य थे कि वे स्वयं वैसी कोई रचना नहीं कर सकते थे तो वे कविसंघके सामने उसे अपने नामसे पेश करनेके योग्य भी नहीं हो सकते थे- तब ' कुरल' को एलाचार्यके नामसे ही उपस्थित करते, जिनके नामसे उपस्थित करनेमें कोई बाधा मालूम नहीं होती और यदि वे खुद भी वैसी रचना करनेके लिये समर्थ थे तो यह नहीं हो सकता कि उन्होंने साराका सारा ग्रंथ दूसरे विद्वानसे लिखा कर उसे अपने नामसे प्रकट किया हो अथवा उसमें अपनी कुछ भी कलम न लगाई हो। इस विषयमें हिन्दुओंका यह परम्पराकथन ज्यादा वजनदार मालूम होता है कि थिरुवल्लुवरने 'एलालसिंह ' की सहायतासे स्वयंही इस ग्रंथकी रचना की है; परंतु उनका ग्रंथकर्ताको शैवधर्मानुयायी बतलाना कुछ ठीक नहीं अँचता । बहुत संभव है कि हिन्दुओंका यह 'एलालसिंह ' एलाचार्य ही हो अथवा एलाचार्य के गृहस्थ जीवनका ही यह कोई नाम हो । वस्तुस्थितिकी ऐसी हालत होते हुए, विना किसी प्रबल प्रमाणकी उपलब्धि अथवा योग्य समर्थनके पट्टावलीके प्रकृत कथनपर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता। और न एक मात्र उसीके आधारपर यह कहा जा सकता है कि एलाचार्य कुन्दकुन्दका नामान्तर था।
पट्टावलिप्रतिपादित समय । अब समयविचारको लीजिये । जिस पट्टावलीके आधारपर चक्रवर्ती महाशयने कुन्दकुन्दके उक्त समयका प्रतिपादन किया है वह वही पट्टावली है जिसे ऊपर 'ख' भागमें बहुत कुछ संदिग्ध और अविश्वसनीय बतलाया जा चुका है । और इसलिये जबतक उसपर होनेवाले संदेहों