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स्वामी समंतभद्र। चार्य,से किसीको आपका गुरु नहीं लिखा है; इस लिये इन आचार्योंके बाद कमसे कम एक आचार्यका आपके गुरुरूपसे होना जरूरी मालूम पड़ता है, जिसके लिये उक्त समय अधिक नहीं है। इस तरह पर कुन्दकुन्दके समयका प्रारंभ वीरनिर्वाणसे ७०३ या ७१३ के करीब हो जाता है। परन्तु इस अधिक समयकी कल्पनाको भी यदि छोड़ दिया जाय और यही मान लिया जाय कि वीरनिर्वाणसे ६८३ वर्षके अनन्तर ही कुन्दकुन्दाचार्य हुए हैं तो यह कहना होगा कि वे विक्रम संवत् २१३ (६८३-४७० ) के बाद हुए हैं उससे पहले नहीं । यही पं० नाथूरामजी प्रेमी * आदि अधिकांश जैन विद्वानोंका मत है। इसमें हम इतना और भी जोड़ देना चाहते हैं कि वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका देहजन्म मानते हुए, उसका विक्रमसंवत् यदि राज्यसंवत् है तो उससे १९५ ( ६८३-४८८ ) वर्ष बाद
और यदि मृत्युसंवत् है तो उससे १३३ (६८३-५५० ) वर्ष बाद कुंदकुंदाचार्य हुए हैं। साथ ही, इतना और भी कि, यदि शक राजाका अस्तित्वसमय वीरनिर्वाणसे ४६१ वर्ष पर्यंत रहा है, उसीकी मृत्युका वर्तमान शक संवत् (१८४६) प्रचलित हैं और विक्रम तथा शक संवतोंमें १३५ वर्षका वास्तविक अन्तर है तो कुन्दकुन्दाचार्य वि० सं० से ३५७ ( ६८३-३६१+१३५) वर्ष बाद हुए हैं।
ऊपर उमास्वातिके समयसे समन्तभद्रके समयकी कल्पना प्रायः ४० वर्ष बाद की गई है, कुन्दकुन्दके समयसे वह ६० वर्ष बाद की जा सकती है और कुछ अनुचित प्रतीत नहीं होती । ऐसी हालतमें समन्तभद्रको क्रमशः वि० सं० २७३, २५५, १९३ या ४१७ के करीबके विद्वान् कह सकते हैं। और यदि शक संवत् शक राजाकी
* देखो जैनहितैषी भाग १० वाँ, अंक ६-७, पृ० २७९ ।