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समय-निर्णय ।
१६३ गधारियोंकी २२० वर्षकी संख्याके बाद ११८ वर्षके भीतर होनेवाले प्रतिपादन किया है और साथ ही 'आचारांग' नामक प्रथम अंगके ज्ञाता लिखा है। इन चारों मुनियोंके अनन्तर अर्हद्वलि, माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि नामके पाँच आचार्योंको 'एकांगधारी' लिखा है और उनका समय ११८ वर्ष दिया है *। इस तरह पर वीरनिर्वाणसे भूतबलिपर्यंत ६८३ वर्षकी गणना की गई है । यह गणना श्रुतावतार, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, हरिवंशपुराण, आदिपुराण और सेनगणकी पट्टावलीसे कितनी भिन्न है और इसके द्वारा पुष्पदंत भूतबलि तक आचार्योंकी समयगणनामें कितना अन्तर पड़ जाता है इसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं। परन्तु यदि इसीको ठीक मान लिया जाय और यह स्वीकार किया जाय कि भूतबलिका अस्तित्व वीरनिर्वाण संवत् ६८३ तक रहा है तो भूतबलिके बाद कुंदकुंदकी प्रादुर्भूतिके लिये कमसे कम २०-३० वर्षकी कल्पना
और भी करनी होगी; क्योंकि कुन्दकुन्दको दोनों सिद्धान्तोंका ज्ञान गुरुपरिपाटी द्वारा प्राप्त हुआ था । और पुष्पदंत, भूतबलि या उच्चारणा
* यथा-पंचसये पणसहे मन्तिमजिणसमयजादेसु।
उपपण्णा पंचजणा इयंगधारी मुणयब्वा ॥ १५॥ अहिवकिलमाधणंदिय धरसेणं पुष्फयंतभूतबली। अढवीसे इगवीसं उगणीसं तीस वीस वास पुणो ॥११॥ इगसयभठारवासे इयंगधारी य मुणियरा जादा ।
छसयतिरासियवासे णिव्यागा अंगदित्ति कहियजिणे ॥१७॥ एवं द्विविधो द्रव्यभावपुस्तकगतः समागच्छन् । गुरुपरिपाट्या ज्ञात: सिद्धान्तः कुण्डकुन्दपुरे ॥ १६ ॥ श्रीपद्मनन्दिमुनिना सोऽपि द्वादशसहस्रपरिमाणः । पन्यपरिकर्मकर्ता षट्खण्डायत्रिखण्डस्य ॥११॥