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समय-निर्णय ।
शताब्दी पीछेके विद्वान् समझे जाने चाहिये * । इससे, मल्लवादीके समयके आधार पर मुनिजीने जो यह प्रतिपादन किया है कि सिद्धसेन विक्रमकी पाँचवीं शताब्दीसे पहले हुए हैं सो ठीक प्रतीत नहीं होता।
और भी कोई दूसरा प्रबल प्रमाण अभी तक ऐसा उपलब्ध नहीं हुआ जिससे सिद्धसेनका समय ईसावी पाँची छठी शताब्दीसे पहले स्थिर किया जा सके, और छठी अथवा पाँचवीं शताब्दीका समय मानने पर हमें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं हो सकता कि समंतभद्र सिद्धसेन दिवाकरसे बहुत पहले हुए हैं, जैसा कि पाठकोंको आगे चलकर मालूम होगा।
यहाँ पर इतना और भी प्रकट कर देना उचित मालूम होता है कि सिद्धसेनको विद्याभूपणजीने श्वेताम्बर संप्रदायका विद्वान् लिखा है। हमारी रायमें आपका यह लिखना केवल एक सम्प्रदायकी मान्यताका उल्लेख मात्र है, और दूसरे सम्प्रदायकी मान्यतासे अनभिज्ञताको सूचित करता है। इससे अधिक उसे कोई महत्त्व नहीं दिया जा सकता । अन्यथा, जब दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें सिद्ध
* देखो उक्त इतिहास ( History of the Mediaeval School of Indian Logic) के पृष्ठ ३५, १३१ ।
१ वराहमिहिर के एक ग्रंथमें जब शक सं० ४२७ (ई० सन् ५०५) का उल्लेख है तो वे उसकी रचनासे प्रायः २०-२५ वर्ष पहले और भी जीवित रहे होंगे, यह स्वाभाविक है, और इस लिये उनका अस्तित्व समय ईसाकी पाँचवीं शताब्दीका चतुर्थ चरण भी जान पड़ता है। इसके सिवाय यह भी संभव है कि वराहमिहिरकी युवावस्थाका जो प्रारंभ काल हो वह क्षपणककी वृद्धावस्थाका समय हो, इसी लिये यहाँपर पाँचवीं शताब्दीको भी सिद्धसेनके अस्तित्वके लिये प्रहण कर लिया गया है।