________________
१२०
स्वामी समन्तभद्र।
होता है । यह काल, इतिहासमें, राष्टकूट राजा 'दन्तिदुर्ग' से प्रारंभ होता है और यहींसे राष्ट्रकूटोंके विशेष उदयका उल्लेख मिलता है। इससे पहले इन्द्र (द्वितीय), कर्क (प्रथम), और गोविन्द (प्रथम ) नामके तीन राजा और भी हो गये हैं, जिनके राज्यकालादिकका कोई विशेष पता नहीं चलता । मालूम होता है उनका राज्य एक ही क्रमसे नहीं रहा और न वे कोई विशेष प्रभावशाली राजा ही हुए हैं । डाक्टर आर० जी० भाण्डारकरने, अपनी 'अर्ली हिस्टरी ऑफ डेक्कन' में, उस वक्त तक मिले हुए दानपत्रोंके आधार पर उक्त गोविन्द (प्रथम) को इस वंशका सबसे प्राचीन राजा बतलाया है * । साथ ही, यह प्रकट किया है कि 'आइहोले' के रविकीर्तिवाले शिलालेख (शक सं० ५५६) में जिस गोविन्द राजाके विषयमें यह उल्लेख है कि उसने चालुक्यनृप पुलकेशी (द्वितीय) पर आक्रमण किया था वह प्रायः यही गोविन्द प्रथम जान पड़ता है । ऐसी हालतमें-जब कि इस वंशके प्राचीन इतिहासका कोई ठीक पता नहीं है-यह कहना कि समंतभद्रने प्राचीन राष्ट्रकूटोंके राज्यकालमें प्राधान्य प्राप्त किया था अथवा वे उस समय लब्धप्रतिष्ट हुए थे, युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता। यदि आय्यंगर महाशयके इस कथनका अभिप्राय यह मान लिया जाय कि समंतभद्र दन्तिदुर्गराजाके राज्य-कालमें हुए हैं अथवा यह स्वीकार किया जाय कि वे गोविन्द प्रथमके समकालीन थे और इसलिये उनका अस्तित्वसमय, भांडारकर महोदयकी सूचनानुसार, वही शक संवत्
१ द्वितीय संस्करण, पृष्ठ ६२, 'गवर्नमेंट सेंट्रल प्रेस,' बम्बईद्वारा सन् १८९५ सन १८९५ का छपा हुआ।
* The earliest prince of the dynasty mentioned in the grants hitherto discovered is Govinda I.