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________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि ~rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr ठक्कुर वलिराजकृत गाढाभ्यर्थनया पडावश्यकवृत्ति सुगमा वालाववोधकारिणी सकल सत्तोपकारिणी लिखिता। छ.। शुभमस्तु ॥ छः ॥ (स० १४१२ लिखित प्रति, बीकानेर ज्ञानभंडार मे से) कुलीनता इस जाति की कुलीनता और ञ्चता ओसवाल, श्रीमालादि जातियों से किसी तरह न्यून नहीं थी। श्रीजिनपतिसूरिजी कृत समाचारी ' के अन्त में खरतरगच्छ मे आचार्यो, उपाध्यायों, महत्तरा आदि पदों के योग्य कुलो की जो व्यवस्था की गई है उनमें महक्तिआण जाति को भी वीसा ओसवाल,श्रीमालों की भाति आचार्य पद के योग्य बतलाई गई है। __ लेखों की सूची इस जातिवालों के निर्माण कराये हुए जिन विम्व व जीर्णाद्धारों के उल्लेखवाले बहुत से शिलालेख इस समय उपलब्ध हैं। जिनमे से बाबू पूरणचन्दजी नाहर द्वारा सम्पादित 'जेन लेख संग्रह के भाग १-२-३ आदि के लेखों की संवतानुक्रम सूची तथा अन्य सूचिया नीचे दी जाती है। जिससे पाठकों को उनके उत्कर्प एवं सुकृत्यों का संक्षिप्त परिचय हो जायगा। १ उ० श्री जयमागरजी सकलित श्रीजिनदत्तसूरि चरित्र उत्तरार्व में प्रकागित।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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