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________________ मालियाण जाति "न विजर्यामह रम्फर परी मातिाण मुग्लि मार । तउ नामु ठाम नए अप्पियउ तउ गोलाइ गर गणधार 11 त गुमर घर मसणठ अलिराट नाम् । न मिलिय मंघ समुदाय नदि महनिभाण अभिरामु ॥९॥ (हमारे सम्पादित तिहासिक-जन-काव्य संग्रह" प. १) उपर्युक्त श्रावक ठपकुर विजयसिंह की गुरुभक्ति की प्रशंसा पड़ी २ उपमाओं द्वारा ममी राम में उम प्रकार वर्णित है: स माहिए भादि निगद भरा, नेमि जिग नारायण पामा ए जिम परमिन्दु जिम मेगिग गुर पोर निण, मिण परिप गहगुरु भनि मा निमाण परि सय ए. पहिान्नण नात परिपुन्न विजयमोहु चगि जामि लिपट, परमान ठार विजयसिंह के पुत्रग्स ठार बलिराज की गाद अभ्यर्थना से परतरगन्जीय श्रीमरणप्रभाचार्य ने “पटावश्यक चालावबोध गृत्ति" की रचना की थी, जैसा कि इस प्रन्य की निम्न प्रशम्नि से शान होना है:-- ____ "संवत १४११ वर्षेनीपोत्नय दिवने शनिवारे श्रीमनट पत्तने महागजाधिराज पानमामि भी पागजगाति विजयगाय प्रवनमान श्री चंद्रगाचालंकार श्रीपरनग्गरमाधिपति श्री जिनपन्द्रमृरिशियाश भीनम्णप्रभारिभिः श्रीमंत्रिदलीय पशावतंस टपटर यार सुन परमाग कार विजामिन श्री जिनशामन प्रभागर. श्रीनगुणांना भिन्नामणि रिषित मम्तक गोजिनधर्म कायकपर मिल नपान परमान
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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