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मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि
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महोत्सव में देशान्तरीय संघ' भी सम्मिलित हुआ था । इसी समय श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के शिष्य वाचनाचार्य जिनभद्र भी आचार्य पद देकर श्रीजिनभद्राचार्य नामक द्वितीय श्रेणि के आचार्य बनाये गये ।
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पट्टावलियों की दो विशेष बातें
मणिधारीजी का उपर्युक्त चरित्र उपाध्याय श्री जिनपाल रचित गुर्वावली के आधार पर लिखा गया है। पट्टावलियों में और भी कई बाते पाई जाती हैं, जिन मे बहुत सी बातें भ्रान्त और असंगत ज्ञात होती है । ऐतिहासिक दृष्टि से निम्नोक्त दो बातें कुछ तथ्यपूर्ण प्रतीत होने से यहा लिखी जाती है
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१ श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने महत्तियाण ( मन्त्रिदलीय ) जाति की स्थापना की थी, जिन की परम्परा में से कई व्यक्तियों ने पूर्वदेश के तीथा का उद्धार कर शासन की बडी भारी सेवा की है। सतरहवीं शताब्दी पर्य्यन्त इस जाति के बहुत से घर अनेक स्थानों में थे पर इसके बाद क्रमशः उसकी सख्या घटन
जिनपतिमूरिजी के उपर्युक्त प्रसन से मानदेव के समृद्धिसम्पन और जिनपतिसूरिजी पर असीम स्नेह का पता लगता है । स० १२३३ का में कन्यानयन ( करनाल ? ) स्थान में इन्हीं मानदेव ने श्री महानोर सामी का प्रतिमा श्रीजिनपतिसूरिजी से स्थापित करवाई थी। इस प्रतिमा का विशेष वर्णन जिनप्रभसूरि रचित विविध-तोर्घकल के कन्याचयन क्ल को देखना चाहिए।