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46 अथ श्री संघपकः -
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विषयतयोजयोरपि श्रुत्योः सामान्यविधित्वं विशेष विधित्वं वा प्रसज्येत ॥ विनिगमनायां प्रमाणानावात् ॥
अर्थ:--प्रथमनो तथा त्रीजो ए वे विकल्प न ग्रहण कर. केम जे पागल कहेली जे श्रुति तेथीज आ लोक परलोकनुं फळ सिक थशे. माटे अपराध विनाना पशुना वधने कहेनारी बीजी श्रुति ते वझे सयु. एटले वीजी श्रुति कहेवानुं शुं प्रयोजन वळी बीजो विकल्प पण नथी घटतो. केम जे वे श्रुतियोनुं फळ बरोबर 'नियमाये दे तो वे श्रुतियोनो पण सामान्य विधि अंगिकार करो अथवा विशेष विधि अंगिकार करो. केम जे एक श्रुति अंगिकार करवी एवा निश्चयनो अनाव के.
टीकाःन चैतद् नवतोप्यन्निमतातस्मान्न हिंस्या दित्यादि. श्रुत्यैव सकलसत्वानयदानप्रतिपादनझलितया ऽनायाससाध्यार्थयास्वर्गादिफल सिद्धेः किमनया यागकारिणां पिशितलोलता मात्रानिव्यंजिकयाऽमुत्र नरकपातका रिएया बहुवित्तव्ययायास साध्यार्थया पशुवधश्रुत्येति ॥
अर्थः- एक श्रुति एटले न हिंसा करवी कोनी, श्रथवा इमां हिंसा करवी, ए श्रुति ए वेमांथी एक मानवी एक न मानवी वो तो तारो पण मत नयी. ते माटे समस्त प्राणी मात्रने अजयनि अापवानुं जे प्रतिपादन करवु तेमां दरिज एटले सर्वथा अनय. न कहेवा न समर्थ थनी एवी ने प्रयास विना साध्य ते अर्थ जेनो ६वी ने हिंसा करवी झ्यादि. श्रुति तेणे करीनेज स्वर्गादि फलनी