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आगम के अनमोल रत्न
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चारों ओर से घेर लिया। दधिवाहन की रानी पद्मावती और शतानीक की रानी मृगावती दोनों सगी बहने थी इसलिये ये दोनों आपस में साढू थे । सम्बन्धी होने पर भी कोशाम्बी का राजा शतानीका दधिवाहन की समृद्धि पर जलता था। दधिवाहन की समृद्धि को मिट्टी में मिलाने के लिये ही उसने यह अचानक हमला बोल दिया ।
दधिवाहन इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबरा गया। उसने अपनी सेना को एकत्र कर शतानीक का जबरदस्त सामना किया किन्तु शतानीक की विशाल सेना के सामने वह टिक नहीं सका । दधिवाहन भाग गया । दधिवाहन की सेना परास्त होकर इधर-उधर भागने लगी।
दधिवाहन की सेना ने चपा का द्वार तोड़ दिया। वह नगरी में घुस गई और नगरी को स्वच्छंदता पूर्वक लूटने लगी। सारे नगर में हाहाकर मच गया । सैनिकों का विरोध करना साक्षात् मृत्यु थी।' पाशविक्ता का नग्न ताण्डव होने लगा । शतानीक ने भी अपने सैनिकों को तीन दिन तक लूट मचाने की छुट्टी दे दो । सैनिकों को स्वच्छंदता पूर्वक लूटते देख शतानीक खूब प्रसन्न हो रहा था । उस समय एक सारवान (उँट सवार) ने दधिवाहन के महल में प्रवेश किया
और उसने रानी धारिणी को तथा उसकी कन्या वसुमती को पकड़ लिया । उन्हे जबरदस्ती से ऊँट पर डाल लिया और वह कोशाम्बी की ओर रवाना हो गया। रास्ते में उसने सोचा कि धारिणी को मैं अपनी स्त्री बना लूंगा और वसुमती को बेच दूंगा । धारिणी सारवान के मनोगत भावों को ताड़ गई और उसने अपनी जीभ पकड़ कर बाहर खीचली । उसके मुँह से खून की धारा बहने लगी । प्राण पखेरू उड़ गये । निर्जीव शरीर पृथ्वी पर गिर पड़ा । अपने बलिदाना द्वारा धारिणी ने वसुमतो तथा समस्त महिला जगत् के सामने तो महान् आदर्श रखा ही, साथ ही में सारथी के जीवन को भी सहसा पलट दिया ।