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आगम के अनमोल रत्न वे आहार को परठ कर शत्रुजय पर्वत पर चढ़े। वहां उन्होंने दो मास का संथारा लिया । अन्त में शुद्ध भावों से संयम की साधना करते हुए वे केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त कर मोक्ष में गये।
उपनय अत्यन्त क्लेश सहन करके कितना ही कठिन तप क्यों न दिया 'हो, अगर उसे निदान के दोष से दूषित बना लिया जाय तो वह मोक्ष का कारण नहीं होता । जैसे सुकुमालिका के भव में द्रोपदी के जीवने किया।
इसके अतिरिक्त भक्तिभाव से रहित होकर सुपात्र को भी यदि अमनोहर अयोग्य दान दिया आय तो वह भी अनर्थ का हेतु होता है । इस विषय में नागश्री का दान ज्वलंत उदाहरण है।
- महासती चन्दनवाला
चंगपुरी नाम की एक विशाल नगरी थी । वह अग देश की राजधानी थी और वह धन धान्य से समृद्ध थो ।
वहाँ दधिवाहन नामके न्यायप्रिय राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम धारिणी था । राजा तथा रानी दोनों धर्मपरायण थे। दोनो में परस्पर प्रेम था ।
कुछ समय के बाद महारानी धारिणी ने एक रूपवतो कन्या को जन्म दिया । उसका नाम वसुमती रक्सा । वसुमती वास्तव में वसुमती ही थी । उसका भोला भाला चेहरा बड़ा ही सुहावना लगता था । प्रत्येक देखने वाले को वह अपनी ओर आकर्षित कर लेताथा।
राजा की लाड़ली कन्या के लिये किसी बात की कमी नहीं थी। उसके सुख की सभी सामग्रियां उपलब्ध थीं । वह सुखपूर्वक बढ़ने लगी। उसने नव यौवन में प्रवेश किया । ___कोशाम्बी के राजा शतानीक ने चंपा के राजा दधिवाहन पर अचानक चढ़ाई करदी और एक रात में चंपा पहुँचकर नगरी को