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________________ ५७६ आगम के अनमोल रत्न पुत्र और केशीकुमार नामक भाणेज था । उदायण राजा सिन्धुसौवीर आदि सोलह प्रान्तों (देशों), एवं वीतिभय आदि ३६३ नगरों का अधिपति था । महासेन (अपर नाम चण्ड प्रद्योतन) जैसे दस मुकुट बद्ध राजा तथा अनेक छोटे छोटे नृपतिगण उसकी आज्ञा में रहते थे । इसका राज्य बहुत समृद्धशाली था । यह भगवान महावीर का परम उपासक और अन्तिम मुकुटबद्ध प्रजित राजा था । एक बार उज्जैणी के राजा चण्ड प्रद्योतन उदायण राजा की सुवर्णगुटिका नामक दासी का अपहरण करके ले गया । जब उदायण को इस बात का पता लगा तो उसने दस राजाओं की सहायता से उज्जैणी पर चढ़ाई करदी और चण्डप्रद्योतन को युद्ध में हरा कर उसे कैद कर लिया । उदायण ने चण्ड प्रयोतन के कपाल पर दासीपति शब्द अंकित किया । चण्डप्रद्योतन को लेकर उदायन सिन्धुसौवीर की ओर चला । मार्ग. में पर्युषण पर्व आया। एक स्थानपर (दशपुर नगर वर्तमान मन्दसौर) छावनी डालकर उदायण पर्युषण पर्व की आराधना करने लगा । संवत्सरी के दिन उदायण ने पौषध युक्त उपवास किया । यह देख चण्डप्रद्योतन ने भी उपवास किया। दूमरे दिन उदायण ने चण्डप्रद्योतन से सांवत्सरिक क्षमा याचना की परन्तु चण्डप्रयोतन ने क्षमा देने से इनकार कर दिया। तब उदायण ने उसे कैद से मुक्त कर दिया और उसका राज्य उसे वापस लौटा दिया तथा सुवर्णगुटिका दासी को भी उसके कहने से दे दिया । दासीपति शब्द के स्थान पर सुवर्णपट्ट बांध दिया और अपना मित्र राजा घोषित किया। उदायण अपने नगर वीतिभय लौट आया । एक समय उदायण पर्वदिन का पौषध ग्रहण कर अपनी पौषधशाला में धर्म जागरण कर रहा था । आत्म चिन्तन करते हुए उसने सोचा-“धन्य हैं वे ग्राम, नगर जहाँ श्रमण भगवान महावीर विचरते है ! भाग्यशाली हैं वे राजा और सेठ साहूकार जो इनकी वन्दना तथा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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