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आगम के अनमोल रत्न
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आया और एक हजार आठ वणिकों के साथ भगवान मुनिसुव्रत के पास दीक्षित हो गया।
प्रवज्या ग्रहण कर उसने बारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया । बारह वर्ष तक संयम का पालन कर वह अनशन पूर्वक काल धर्म को प्राप्त हुमा । मरकर सौधर्म कल्प का शक नामक इन्द्र वना । तापस मरकर उसी इन्द्र का ऐरावत हाथी बना । ऐरावत हाथी ने अवधिज्ञान से अपना पूर्वभव देखा। उसमें कार्तिक सेठ को इन्द्र वना जान वह इधर उधर भागने लगा । तब इन्द्र ने उसे पकड़ लिया। हाथी ने इन्द्र को डराने के लिये दो रूप बनाये तब इन्द्र भी अपने दो रूप बनाकर हाथी पर चढ़ बैठा । हाथी ने चार रूप बनाये तो इन्द्र ने भी चार रूप बनाये। अन्त में इन्द्र की शक्ति के सामने उसे झुकना पड़ा । उसे मजबूर होकर इन्द्र का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा।
मुनि उदायन । उदायण-सिन्धुसोवीर देश का राजा था इसका निवास स्थान चीतिभय नगर में था । इसने वैशाली के राजा चेटक की पुत्री प्रभावती के साथ विवाह किया था। उसके (अभीची) भभीतिकुमार नामक
*ऐसी भी एक परम्परा है कि तापस ने राजा से कहा-अगर कार्तिक सेठ अपनी पीठ पर थाली रखकर मुझे भोजन करने देगा तो मै तुम्हारे यहाँ पारणा करूँगा । राजा ने तापस की बात स्वीकार करली । राजा ने सेठ को बुलाया और उसे तापस की आज्ञानुसार वर्तने का आदेश दिया । तापस आया । कार्तिक सेठ राजाज्ञा के अनुसार नीचे झुका । तापस ने उसकी पीठ पर उप्ण खीर की थाली रखकर खीर खाई । तापस के इस अपमान जनक व्यवहार से कार्तिक सेठ बना दुःखी हुआ। उसने उसी समय दीक्षा लेने का निश्चय किया
और घर आकर १००८ वणिकों के साथ भगवान मुनिसुव्रत के समीप प्रत्रजित होगया ।