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आगम के अनमोल रत्न
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पुरुष के मुख से हृदय विदारक करुण कहानी सुन कर वे माकदीपुत्र अत्यन्त भयभीत होगये और उससे देवो के पंजे से छूटकर जाने का मार्ग पूछने लगे । शूली पर लटके हुए पुरुष ने कहा-सुनो, पूर्व चनखण्ड में शैलक नाम का एक अश्वरूप धारी यक्ष रहता है। वह प्रत्येक चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस और पूर्णिमा के दिन बड़े जोर जोर से चिल्लाकर कहता है-"मै किसकी रक्षा करूँ ? किसे पार उतारूँ ?" उस समय तुम लोग उसके पास जाना और उसकी पूजा अर्चना करके उससे विनय पूर्वक प्रार्थना करना-"हे यक्ष ! कृपाकर हमारी रक्षा कर, हमें पार उतार।"
यह सुनकर माकन्दी पुत्र बड़े प्रसन्न हुए और बढी तीन गति से पूर्व दिशा के वनखण्ड में जहाँ पुष्करणी वाव थी वहां आये और पुष्करणी में उतर कर स्नान किया । कमल पुष्पों को ग्रहण कर वे शैलक यक्ष के यक्षायतन में आये और भक्ति पूर्वक पूजा करने लगे। यक्ष संतुष्ट होकर बोला-पुत्रो ! वर मांगो । माकन्दी पुत्र वोले-देव! हमारी रत्नद्वीप की देवी से रक्षा करो। हमारे प्राण बचाभो। शैलक यक्ष ने माकन्दी 'पुत्रों से कहा-पुत्रो, मै तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ किन्तु तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी । वह यह कि जब मै तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर चलूँ तो उस समय रत्नद्वीप की देवी तुम्हें नाना प्रकार के हाव भाव प्रदर्शित कर लुभाने का प्रयत्न करेगी, तथा भयंकर विकराल रूप बनाकर तुम्हें डारायेगी धमकायेगी, उस समय तुम लोग जरा भी विचलित न होना। यदि तुमने अस्थिर होकर जरा भी मोह भाव से देवी की ओर देखा तो मै उसी क्षण तुम्हें पीठ पर से उतार ‘कर समुद्र में फेक दूंगा और देवी तुम्हारा तत्काल वध कर डालेगी। यदि तुम दृढ़ रहे तो मै तुम्हें देवी के जाल से अवश्य मुक्त कर दूंगा। माकन्दी पुत्रों ने शैलक यश की वात मान ली। यक्ष ने भश्व का रूप बनाया और दोनों को अपनी पीठ पर चढ़ाकर बड़े वेग से चम्पा की ‘ओर चल दिया ।