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________________ ४५६ आगम के अनमोल रत्न कनकध्वज के राजा बनने के बाद पद्मावती ने उससे कहा-पुत्र । तेतलीपुत्र अमात्य को तुम पिता तुल्य मानना । उसी के प्रताप से तुम्हें गद्दी मिली है। कनकध्वज ने माता की बात स्वीकार कर ली । कनकध्वज राजा तेतलीपुत्र अमात्य का बहुत आदर सत्कार करने लगा तथा उसके अधिकार में वृद्धि कर दी इससे तेतलीपुत्र मन्त्री काम भोगों में अधिक गृद्ध एवं आसक्त हो गया। __ अपने वचन के अनुसार पोटिल देव ने तेतलीपुत्र को धर्म का बोध दिया किन्तु उसे धर्म की और रुचि न हुई । एक बार पोट्टिल देव को इस प्रकार अध्यवसाय हुआ-"कनकध्वज राजा तेतलीपुत्र का आदर करता है इसलिये वह प्रतिबोध नहीं प्राप्त करता है" ऐसा विचार कर उसने कनकध्वज राजा को तेतलीपुत्र से विमुख कर दिया । एक बार तेतलीपुत्र राजा के पास आया । मन्त्री को आया देखकर भी राजा ने उसका आदर नहीं किया । तेतलीपुत्र ने राजा कनकध्वज को प्रणाम किया तो भी राजा ने आदर नहीं किया और चुप रहा। राजा की यह स्थिति देखकर अमात्य तेतलीपुत्र भयभीत हो गया और घोड़े पर सवार होकर वह अपने घर वापस चला आया । केवल राजा ही नहीं किन्तु नगर के बड़े बड़े रईस, सेठ, साहूकार भी इससे घृणा करत लगे। तेतलीपुत्र जहाँ भी जाता, अनादर पाता था । उससे बात करना दूर रहा किन्तु उसका मुख भी कोई देखना पसन्द नहीं करता था । सर्वत्र इस अनादर से तेतलीपुत्र घबरा उठा। उसने अपने जीवन का अन्त करने का निश्चय किया । भात्महत्या करने के लिये वह वन की ओर चल पड़ा । वन में जाकर उसने तालपुट खा लिया लेकिन उसका भी उस पर कोई असर नहीं हुआ। तब उसने अपनी गर्दन पर तेज तलवार चलाई लेकिन वह भी प्रभाव
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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