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________________ आगम के अनमोल रत्न ४५१ ततः बड़े सुभटों के साथ तेतलीपुत्र घुड़सवारी के लिए निकला । उसने दूर से पोहिला को देखा । पोट्टिला के रूप पर मुग्ध होकर उसने पोटिला सम्बन्धी सभी वातों की जानकारी अपने भादमियों से प्राप्त की और घर आने के बाद अपने विश्वस्त आदमियों को पोहिला की मांग करने के लिये स्वर्णकार के घर मेजा । उसने कहलाया कि चाहे जो शुल्क लो लेकिन अपनी कन्या का विवाह मुझ से कर दो। तेतलीपुत्र के विश्वस्त आदमी कलाद स्वर्णकार के घर पहुंचे । स्वर्णकार ने आये मनुष्यों का स्वागत सत्कार किया और आने का कारण पूछा, उत्तरमें उन्होंने कहा- हम तुम्हारी पुत्री पोट्टिला की अमात्य तेतलीपुत्र की पत्नी के रूप में मंगनी करते हैं । यदि तुम समझते हो कि यह सम्बन्ध उचित और प्रशंसनीय है तो तेतलीपुत्र को पोट्टिला प्रदान करो। अगर आप चाहेगे तो इसके बदले में वे आपको मनमाना धन देंगे! कलादने कहा-यही मेरे लिये शुल्क है जो तेतलीपुत्र मेरी पुत्री का पाणिग्रहण कर मेरे पर अनुग्रह कर रहे हैं। मै बिना किसी शुल्क के अपनी प्यारो पुत्रो पोटिला का विवाह तेतलीपुत्र के साथ करने के लिए सहर्ष तैयार हूँ । इसके बाद कलाद ने आगन्तुक अतिथियों का भोजनादि से सत्कार किया और उन्हें सम्मान पूर्वक विदा किया । ____ कलाद स्वर्णकार ने शुभ तिथि नक्षत्र और मुहुर्त में पोहिला को रनान कराकर और समस्त अलंकारों से विभूषित करके शिविका में बैठा- दिया और वह अपने सगे सम्बधियों तथा मित्रजनों को साथ लिये तेतलीपुत्र के घर गया और अपनी पुत्री को तेतलीपुत्र की पत्नी बनाने के लिये उसे सौप दिया । । इधर तेतलीपुत्र ने भी विवाह की तैयारी करली थी। पोट्टिला के आने पर उस समय की विधि के अनुपार उसके साथ तेतलीपुत्र ने विवाह कर लिया । तेतलीपुत्र ने आगन्तुक महमानों का भोजन आदि
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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