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________________ ७७ तोर्थङ्कर चरित्र - १३. भगवान विमलनाथ धातकीखण्ड द्वीप के प्रागविदेह क्षेत्र में भरत नामक विजय में महापुरी नाम की नगरी थी । वहाँ पद्मसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा एवं न्यायप्रिय थे। उन्होंने सर्वगुप्त नाम के भाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और साधना के सोपान पर चढ़ते हुए तीर्थकर नासकर्म का उपार्जन किया । कालान्तर में आयुष्य पूर्ण करके सहस्रार देवलोक में उत्पन्न हुए । ___ इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांपिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ 'कृतवर्मा' नामका न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम 'श्यामा' था । कृतवर्मा मुनि का जीव सहस्रार देवलोक से च्युत होकर वैशाख शुक्ला द्वादशी के दिन उत्तरा-भाद्रपद नक्षत्र में श्यामादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। चौदह महास्वप्न देखे । माघ मास की शुक्ला तृतीया के दिन मध्यरात्रि में उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में शूकर से चिह्न से चिन्हित तप्तसुवर्ण की कान्तिवाले पुत्र को महारानी ने जन्म दिया। देवी देवताओं एवं इन्द्रों ने भगवान का जन्मोत्सव किया । गुण के अनुसार भगवान का नाम विमलनाथ रखा गया । युवा होने पर विमलकुमार का विवाह अनेक राजकुमारियों के साथ हुआ । साठ धनुष ऊँचे एवं एक सौ आठ लक्षण से युक्त प्रभु का उनके पिता ने राज्याभिषेक किया । ३० लाख वर्ष तक राज्य पद पर रहने के बाद भगवान ने वर्षीदान देकर देवों द्वारा तैयार की गई 'देवदत्ता' नामक शिविका पर आरुढ हो, माघ मास की शुक्ल चतुर्थी के दिन, उत्तरा-भाद्रपद नक्षत्र में, छठ तप सहित सहस्राम उद्यान में दीक्षा धारण की। साथ में एक हजार राजाओंने प्रवज्या ग्रहण की। उस समय भगवान को मनःपर्यायज्ञान उत्पन्न हुआ । इन्द्र द्वारा दिये गये देवदृष्य वस्त्र को धार 'कर भगवान ने विहार कर' दिया।'
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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