________________
७६
आगम के अनमोल रत्न
। दूसरे दिन भगवान ने उपवास का पारणा महापुर के राजा सुनन्द के घर परमान से किया।
एक मास तक छद्मस्थकाल में विचरण कर भगवान विहारगृह नामक उद्यान में पधारे। वहाँ पाटल वृक्ष के नीचे ध्यान करने लगे। माघ शुक्ल द्वितीया के दिन शतभिषा नक्षत्र में चतुर्थभक्त के साथ भगवान ने शुक्ल ध्यान की परमोच्च स्थिति में धनधाती कर्मों को क्षय कर केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया। देवों ने केवलज्ञान उत्सव किया। देवों ने समवशरण की रचना की । भगवान समवशरण में रत्न सिंहासन पर विराज कर देशना देने लगे । भगवान की देशना सुनकर अनेक नर नारियों ने प्रवज्या ग्रहण की। उनमें सूक्ष्म आदि ६६ गणधर मुख्य थे। । । । . भगवान के परिवार में ७२ हजार साधु, १ लाख साध्वियों, '१२०० चौदह पूर्वधर, ५४०० अवधिज्ञानी, छ हजार एकसौ मनःपर्ययज्ञानी' छः हजार केवलज्ञानी, दस हजार चैक्रियलबिधारी, चार हजार सात सौ वादलम्विधारी, दो लाख १५ हजार श्रावक एवं चार लाख ३६ हजार श्राविकाएँ हुई। इस प्रकार अपने विशाल साधु परिवार के साथ एक मास कम चौवन लाख वर्ष तक केवली अवस्था में भव्यों को भगवान उपदेश देते रहे। .. .. .
अपना मोक्ष काल समीप जानकर भगवान चंश नगर., पधारे । वहाँ आपने छ: सौ मुनियों के साथ अनशन ग्रहण कर, एक मास के अन्त में अवशेष कर्मों को खपाकर, आषाढ शुक्ला चतुर्दशी के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया।
भगवान ने कुमारावस्था में भठारह लाख वर्ष एवं व्रत में ५४ लाख वर्ष व्यतीत किये। इस प्रकार कुल ७२ लाख वर्ष आयु के पूर्ण होने पर भगवान मोक्ष में पधारे । भगवान श्रेयांस के निर्वाण के बाद चौवन सागरोपम बीतने पर भगवान वासुपूज्य का निर्वाण हुमा ।''