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________________ तप एवं त्याग के साकार रूप पण्डित श्री प्रेमचन्द्रजी परम श्रद्धेय चारित्र-चूडामणि पूज्य गुरुदेव श्री रत्नचन्द्रजी महाराज अपने युग के एक सुप्रसिद्ध विख्यातनामा आध्यात्मिक साधक थे। आपका तप एव त्यागमय जीवन उन दिनो जनता का आदर्श श्रद्धा केन्द्र था। साधना-साधना कहना और उसकी विशद व्याख्या कर देना और बात है, परन्तु उस तप एव त्याग मय आध्यात्मिक साधना को अपने जीवन का अविभाज्य अग बना लेना, बिल्कुल दूसरी ही बात है । कहना आसान है, परन्तु करना कठिन । उत्कट कठोर अध्यात्म-साधना के नाम मात्र से ही जब अच्छे-अच्छे साधको को पसीना छूटने लगता है, तब उसको जीवन में उतार लेना, कण-कण मे रमा लेना तो बहुत ही बडी बात है । और जो साधक ऐसा कुछ कर दिखाता है-वही तो ससार का पूजनीय एव तपत्याग की प्रखर तेजस्विता से परिपूर्ण सूर्य के समान चमकता है। श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज आध्यात्म-साधना-गगन के एक ऐसे ही जाज्वल्यमान सूर्य थे ।जो तप-त्याग की दिव्य प्रभा लेकर जन जगत मे अवतीर्ण हुए और अपने प्रखर प्रकाश से जैन समाज को चमत्कृत और प्रकाशित करते रहे । एक नव चेतना नव स्फूर्ति एव नव प्रेरणा का पाचजन्य जन-हृदयो मे फूंकते रहे । उनके तप और त्याग की सुगन्धि से, एक पूरी की पूरी शताब्दी बीत जाने पर भी-जैन समाज उसी प्रकार से सुवासित है। उनके सद्गुणो को चमत्कृति से अद्यावधि जैन जगत चमत्कृत है और युग-युग तक रहेगा—यह नि सदेह है । श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव का तप-त्यागमय जीवन अपने आप मे अपनी एक निराली ही पृथक् विशेपता रखता है । इन्होने जिस दिन से तर-त्यागमय साधना का जीवन अपनाया, जिस दिन से साधुवृत्ति स्वीकार की, उसी दिन से लेकर जीवन के अन्तिम क्षण तक उन्होने उसे उसी शान से निभाया। सिंह वृत्ति से साधुत्व लेना और उसे आजीवन सिंह वृत्ति से ही निभाना, यह उन्ही जैसे शूरवीर अध्यात्म साधको का ही कार्य था। अन्यथा यहां आकर तो बडो-बडो के पाव उखड जाते है। ६५
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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