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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ मे पूज्य-प्रवर श्री रत्न मुनिजी महाराज महान कार्य कर गए वह स्वार्णाक्षरो मे अकित होकर सदैव अमर एव अमिट बना रहेगा, ऐसे विश्व कल्याणकारी महामुनि की पवित्र पावन आदर्श जीवनी से जितनी शिक्षा ली जाए, थोडी है। परम योगी सन्त श्री अखिलेश मुनिजी सकल्प और विकल्प दोनो मन के धर्म है । परन्तु दोनो मे बहुत बडा अन्तर है । सकल्प मनुष्य उत्थान की ओर ले जाता है और विकल्प पतन की ओर । ससार का सामान्य व्यक्ति नाना विकल्पो के जाल में फंसा रहता है। उसके मन का विकल्प उसे व्याधि की ओर ले जाता है । जहाँ व्याधि है, वहा सुख कैसा ? किन्तु महापुरुप वह होता है, जो अपनी सकल्प-शक्ति से समाधि की ओर बढता है । सुख, शान्ति आनन्द की ओर अग्रसर होता है। श्रद्धय गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज अपने युग के एक ज्योतिधर महापुरुष थे। अपनी सकल्प शक्ति से वे समाधि की ओर बढे । भोग से योग की ओर चले । अन्त मे अपनी विशुद्ध योगसाधना से वे परमयोगी बने । विकल्पो ओर व्याधियो से मुक्त होकर वे सकल्प और समाधि मे स्थिर हो गए। उनके समाधि योग मे अपार बल था । पूरे सौ वर्षों के बाद भी जन-मन उनके तेजस्वी जीवन को विस्मृत नहीं कर सका है। हजारो हजार भक्त आज भी उनके पवित्र नाम का जप करते है। उस परम योगी सन्त शिरोमणि महापुरुप के पावन पद्मो मे इस पुण्य शताब्दी के शुभ अवसर पर अपनी श्रद्धा समर्पित करता हूँ। उनके पावन जीवन से एक आदर्श को हम अपने जीवन मे स्वीकार करें--विकल्प छोडकर हम अपनी सकल्प-शक्ति से उनके मार्ग का अनुसरण करें।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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