________________
जीवन एक परिचय
प्राकृत, सस्कृत, राजस्थानी, गुजराती और हिन्दी मे अनेक स्वतन्त्र प्रकरण ग्रन्थ भी लिखे गए है । गुरुदेव ने भी नवतत्त्व पर पाण्डित्यपूर्ण गभीर विवेचना की है। प्रत्येक स्थल के विपय विवेचन मे गुरुदेव का तत्त्व-चिन्तन स्पष्ट झलकता है । जो कुछ लिखा है, प्रमाण पुरस्सर एव तर्क सगत लिखा है। नव तत्त्व के गम्भीर अभ्यासियो के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी एव ज्ञानवर्द्धक है। ग्रन्थ गद्य मे है । भाषा राजस्थानी मिश्रित तत्कालीन हिन्दी है । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के यशस्वी प्रकाशक श्रावक भीमसिंह माणक (बम्बई) द्वारा प्रकरण-रत्नाकर नामक सग्रह ग्रन्थ के प्रथम भाग मे यह ग्रन्थ बहुत वर्षों पहले प्रकाशित हुआ है । विद्वानो की दृष्टि मे नवीन सशोधन एव सम्पादन पद्धति के साथ उक्त ग्रन्थ का पुन प्रकाशन अपेक्षित है। प्रश्नोत्तर-माला
प्रस्तुत ग्रन्थ मे धार्मिक और तात्त्विक प्रदनो का बहुत ही सुन्दर शैली मे उत्तर दिया गया है । यद्यपि प्रश्नोत्तर-माला ग्रन्थ बहुत बडा नही है, तथापि इस छोटे से ग्रन्थ मे ही पूज्य गुरुदेव ने सागर को गागर मे भर दिया है । इसके प्रश्न केवल उस युग के ही नहीं, अपितु शास्त्रीय प्रश्नो को भी हल किया गया है । पूज्य गुरुदेव अपने युग के सुप्रसिद्ध तत्त्वदर्शी सन्त थे । अत इधर-उधर से अनेक प्रश्न उनके पास समाधान के लिए आते थे, उन्ही प्रदन और उत्तरो का यह सकलन है। किन्तु प्रश्नोत्तर-माला अभी लिखित रूप मे ही है, वह प्रकाशित नही हो पायी है। गुण-स्थान-विवरण
यह ग्रन्थ आध्यात्मिक दृष्टि से वडा ही महत्त्वपूर्ण है । आगम साहित्य मे यत्र तत्र गुण स्थानो की चर्चा और विचारणा उपलब्ध होती है । समवायाङ्गसूत्र मे और उसकी अभयदेव वृत्ति मे गुणस्थानो का सक्षिप्त वर्णन मिलता है। इसके बाद कर्म ग्रन्थो मे गुणस्थानो का वडे विस्तार से वर्णन आचार्य देवेन्द्रसूरि ने किया है । इस प्रकार आगमगोत्तर साहित्य मे विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न दृष्टिकोणो से गुणस्थानो का विश्लेषण किया है।
पूज्य गुरुदेव ने उक्त समस्त ग्रन्थो के साररूप मे गुणस्थान-विवरण लिखा है । इस ग्रन्थ मे गुणस्थानो के लक्षण, बन्ध, सत्व, उदय और उदीरणा आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला है । परन्तु गुणस्थान विवरण भी अभी तक अप्रकाशित ही है।
इसके अतिरिक्त समय-समय पर की गई विचार चर्चाओ पर भी सक्षेप मे छोटे-छोटे ग्रन्थो की रचना की थी, जिनमे दिगम्बर-चर्चा, तेरहपन्थमत-चर्चा और सवत्सरी चर्चा मुख्य है । कविता-साहित्य
पद्य रूप मे पूज्य गुरुदेव ने जिन स्तुति, सतीस्तवन, प्रार्थना, ससार-वैराग्य, बारह भावना, बारहमासा आदि पर कुछ आध्यात्मिक पद्य लिखे है, जिनमे कुछ प्रकाशित हो चुके है और कुछ अभी तक