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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ अप्रकाशित है । बहुत वर्षों पहले पण्डित रल पूज्य श्री रघुनाथजी म. द्वारा सम्पादित “मनोहर-रत्न धन्नावली" मे गुरुदेव की महत्त्वपूर्ण कविताओ का सक्षिप्त संग्रह प्रकाशित हुआ था। वर्तमान मे तपस्वी श्री श्रीचन्द्रजी म० के सम्पादकत्व मे "रत्न-ज्योति" नाम से भी कुछ विशिष्ट पद्यो का संग्रह दो भागो में प्रकाशित हो चुका है। पद्यो के अतिरिक्त उन्होने कुछ छन्दो बद्ध चरित भी लिखे है, जिनमे "सुखानन्दमनोरमाचरित" विस्तृत है । भाव तथा भाषा की दृष्टि से यह रचना महत्त्वपूर्ण तथा सुन्दर है। यह चरित अभी तक प्रकाशित नहीं हो सका है। किन्तु उनके द्वारा रचित "सगर-चरित्र" और "इलायची चरित्र" प्रकाशित हो चुके है । उक्त जीवन चरित्रो मे विभिन्न छन्द और विभिन्न स्वर लहरियो का समावेश करके उन्हे जनगेय बना दिया गया है । कथावस्तु के साथ यथाप्रसग दान, शील, तप, भाव और वैराग्य आदि का वह विचारोत्तेजक वर्णन भी उपनिबद्ध है, जो पाठक की अन्तरात्मा को जागृत करके उसे जीवन-निर्माण के लिए प्रोत्साहित करता है। शास्त्र-चर्चा आपकी तर्क-शक्ति बढी ही विलक्षण थी। शका-समाधान के क्षेत्र में आपका यश प्रतिष्ठा के केन्द्रबिन्दु पर पहुँच गया था। आपने अपने युग में अनेक शास्त्र-चर्चाएं की थी, जिनमें लश्कर और जयपुर की शास्त्र-चर्चा विशेष प्रसिद्ध है । लश्कर मे सवत् १९१७ मे श्री रत्नविजय जी से मूर्ति-पूजा पर और जयपुर मे सवत् १९१० मे तेरापन्थ के आचार्य पूज्य श्री जीतमल जी से दया एव दान पर की गई चर्चा के कुछ लिखित अश अब भी उपलब्ध है, जो आप श्री के अगाध आगमज्ञान, सूक्ष्म तर्क-शक्ति एव सामयिक सूझ-बूझ का हृदयग्राही परिचय देते हैं। इसके सिवा तत्कालीन अनेक समस्याओ पर यतियो से और आगरा मे एक ईसाई पादरी से भी ईश्वर के कर्तृत्व पर आप ने शास्त्र-चर्चा की थी। अन्तिम-साधना सुन्दरी उषा का प्रत्येक चरण-विन्यास, बहुरगी सन्ध्या मे विलीन होता है । अथ के साथ इति लगी रहती है। विक्रम संवत् १९२१ मे वैशाख शुक्ला द्वादशी बुधवार को सथारा ग्रहण किया और वैशाखी पूर्णिमा शनिवार के दिन जन-जीवन को आलोकित करने वाला वह दिव्य आलोक दिव्य-लोक का यात्री हो गया। विवेक और वैराग्य का प्रखर भास्कर-जो राजस्थान के क्षितिज पर उदय हुआ था, वह उत्तर प्रदेश के अस्ताचल पर अस्त हो गया। आगरा लोहामण्डी के जैन भवन मे सथारा की साधना विधिवत् पूर्ण करके पूज्यपाद श्रद्धेय गुरुदेव रलचन्द्रजी महाराज ने इस असार ससार को छोडकर अमर पद प्राप्त किया। अन्तिम-सन्देश आपने अपने भक्तो को अन्तिम सन्देश देते हुए कहाथा । आप सब लोग धर्म की साधना करते रहना । अपनी श्रद्धा को शुद्ध और पवित्र रखना । अहिंसा, सयम और तप रूप धर्म को जीवन मे उतारने YC
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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