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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
अद्वेय गुरुदेव को उक्त तीनो ही भूमिकाओ मे कमाल हासिल था । जहाँ उनका चिन्तन और प्रवचन गम्भीर एव तत्त्वस्पर्शी था, वहाँ उनकी साहित्यिक रचनाएं भी अतीव उत्तम कोटि की है। गुरुदेव के साहित्य में गुरुदेव की आत्मा वोलती है। उनकी रचनाएँ केवल रचना के लिए रचनाएँ नही ह, अपितु उनमे उनके शुद्ध, पवित्र एव सयमी जीवन का अन्तर्नाद मुखरित है । साहित्य समाज का दर्पण होता है, ठीक है, परन्तु इतना ही नहीं, वह स्वय लेखक के अन्तर्जीवन का भी दर्पण होता है । गुरुदेव का साहित्य आत्मानुभूति का साहित्य है, व्यक्ति एव समाज के चरित्र-निर्माण का साहित्य है । गुरुदेव की साहित्य गगा मे कही मैद्धान्तिक तत्त्व-चर्चा की गहराई है, तो कही चरित्र ग्रन्थो की उतुग तरगे है। कही स्तुति, भजन और उपदेश पदो का भक्ति-प्रवाह है, तो कही आध्यात्मिक भावना का मधुर-घोप है। आपके द्वारा रचित अनेकविध स्फुट अध्यात्मपद आज भी सहस्र जनकण्ठो से मुखरित होते रहते है।
गुरुदेव के द्वारा लिखित साहित्य का अधिकाश भाग अभी अप्रकाशित पड़ा है । कुछ भाग उपलब्ध भी नहीं है । फिर भी, जो कुछ प्राप्त है, जानकारी मे है, उसका सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। मोक्षमार्ग-प्रकाश
उत्तराध्ययन सूत्र के २८ वे अध्ययन पर यह एक स्वतन्त्र व्याख्यारूप ग्रन्थ है । इसमे सप्तमगी स्याद्वाद, नय और निक्षेपो का इतना सूक्ष्म विश्लेपण किया है कि गुरुदेव के तत्त्व ज्ञान सम्बन्धी पाण्डित्य एव बहुश्रुतत्व का पूर्ण दर्शन होता है । निश्चय एव व्यवहार सम्यक्त्व, द्रव्यपूजा एव भावपूजा, धर्मास्तिकाय आदि पड्थ्य, गुणस्थान, कर्मवाद आदि का भी यथास्थान गभीर विवेचन किया है। प्रतिपादित सिद्धान्त के समर्थन मे भगवती-सूत्र, स्थानाग, समवायाग, राजप्रश्नीय, ज्ञातासूत्र, अनुयोगद्वार आदि आगमो के और तत्वार्थ-सूत्र एव गोमट्टसार आदि तत्त्व ग्रन्थो के प्रचुर उद्धरण दिए है, जो गुरुदेव के शास्त्रीय अध्ययन की व्यापकता प्रमाणित करते है।
ग्रन्थ तत्कालीन हिन्दी गद्य मे लिखा गया है, जिसमे राजस्थानी भाषा का पुट है। विषय गभीर एव दार्शनिक होते हुए भी प्रतिपादन-शैली इतनी सरल एव सुवोध है कि साधारण जिज्ञासु भी उक्त ग्रन्थ के अध्ययन से अपनी तत्त्व-जिज्ञासा की पूर्ति कर सकता है ।
मोक्षमार्ग प्रकाश का हिन्दी रूपान्तर, गुरुदेव के ही प्रशिष्य प० श्री भरतमुनि जी के द्वारा सपादित होकर लोहामडी सघ से बहुत वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था । उसी का द्वितीय सस्करण प० विमलकुमार जी द्वारा सशोधित होकर दोघट (मेरठ) से प्रकाशित हुआ है। हिन्दी रूपान्तर अभी और अधिक परिमार्जन की अपेक्षा रखता है।
तत्त्वानुबोध
जैन-दर्शन मे जीव, अजीव, पाप, पुण्य, आस्रव, सवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष-ये नव तत्त्व माने गए है । प्राचीन आगमो एव ग्रन्थो में इनका विस्तार से वर्णन उपलब्ध है । नवतत्त्व के नाम से
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