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________________ जीवन एक परिचय कहा "मैं तो सामान्य साधु के रूप मे सघ की यथाशक्ति सेवा करना चाहता हूँ। आचार्य-जैसे गुरुतर पद-भार को मै नही वहन कर सकता।" कितना सरस, विनम्र एव हृदयस्पर्शी उत्तर है। महापुरुष कर्तव्य मे विश्वास रखते है, किसी पद या पद की सत्ता मे नही। लेखन-कला ___ आपका अक्षर-लेख इतना सुन्दर है कि मानो, कागज पर यथास्थान मोती जड दिए हो। प्रबुद्ध पाठक विना कही रुके, धारा प्रवाह, आपका हस्तलेख पढ सकता है, और साथ ही भावार्थ भी ग्रहण कर सकता है। अक्षर-सौन्दर्य के साथ शुद्धता, स्पष्टता और सुवाच्यता भी आपके लेखन के महत्त्वपूर्ण गुण है। कब, कहाँ और क्या लिखा? १ विक्रमाब्द १८६६ सिघाणा के चौमास मे "जीवाभिगम-सूत्र" । ॥ १८७३ माघ, आगरा मे "काल-ज्ञान"। १८७४ जीद के चौमस मे "अनुत्तरोपपातिक सूत्र"। , १८७६ नारनौल के चौमास मे "साधु गुण माला" और "ठाणाग-सूत्र"। १८८८ चैत्र, अलवर मे "कलियुगबत्तीसी"। १८८८ आषाढ, लश्कर मे "तेरह काठिया"। , १८६३ आगरा में "भरत बाहुवली सवाद"। १८६८ विनौली के चौमास मे "मोक्ष-मार्ग प्रकाश"। १८६९ आगरा, मोती कटरा,'के चौमास मे "आत्महित सज्झाय"। १० , १९१५ बडौत के चौमास मे "सजया"। mn GK and इनके अतिरिक्त भगवती-सूत्र, दशवकालिक-सूत्र आदि और अन्य फुटकर प्रश्नोत्तर साहित्य भी आपने काफी लिखा है, परन्तु निश्चित जानकारी के अभाव मे यहाँ उनके सम्बन्ध मे अभी कुछ नही लिखा जा सकता है। साहित्य-साधना एक बहुश्रुत का कथन है कि अधिकतर जन-समाज के चित्त मे चिन्तन का प्रकाश ही नही होता। कुछ ऐसे भी विचारक होते है, जिनके चित्त मे चिन्तन की ज्योति तो जगमगा उठती है, परन्तु उसे वाणी के द्वारा प्रकाशित करने की क्षमता ही नहीं होती। और कुछ ऐसे भी है, जो चिन्तन कर सकते हैं, अच्छी तरह बोल भी सकते है, परन्तु अपने चिन्तन एव प्रवचन को चमत्कार पूर्ण-शैली से लिखकर साहित्य का रूप नहीं दे सकते।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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