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________________ जीवन एक परिचय कुछ नहीं बिगडने वाला है । मैं कुचामण जाकर और वहाँ एक मास ठहर कर स्वर्गवाम से पहले ही पुन सिंघाणा लौट आऊँगा।" तपस्वी जो मुस्कराए आजा मिली । और ठीक स्वर्गवास से पहले तपस्वी जी के चरणो मे लौट आए। दोनो ही भविष्य द्रष्टा, आज्ञा लेने वाले और आजा देने वाले, भविष्य के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार निश्चित थे कि कोई व्याकुलता नही, कोई इधर उधर की अस्थिरता नही । तपस्वी जी छप्पन दिन का लम्बा सथारा पूर्ण कर फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी शुक्रवार को स्वर्गवासी हुए। भविष्य दर्शन की दूसरी घटना पजाव की है। पजाब प्रान्त के महामहिम आचार्य पूज्य श्री अमरसिह जी म० के गुरु भ्राता तपस्वी श्री जयन्ती लाल जी ने पटियाला में तीन मास का मुदीर्घ घोर तपश्चरण किया था। बीच मे स्वास्थ्य विगडा, इतना विगडा कि तपस्वी जी सयारा की तैयारी करने लगे। पूज्य गुरुदेव ने तपस्वी जी से कहा कि अभी सथारा का समय नहीं आया है। मथारा आपको पाएगा, परन्तु अव नही, तव । कहा जाता है, गुरुदेव के बताए समय पर ही तपस्वी जी सथारा प्राप्त कर स्वर्गवासी हुए। अपने स्वय के स्वर्गवास के सम्बन्ध में भी गुरुदेव ने महीनो पहले भविष्यवाणी करदी थी कि वैशाख शुक्ला पूर्णिमा शनिवार को दिन के दो वजने पर स्वर्गबाम होगा और गुरुदेव का यह कथन गत प्रतिशत काल के काटे पर सही निकला। अनेक धावक और श्राविकाओ के सथारा के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की तथ्य पूर्ण जनश्रुतिया है, जो विस्तारभय से नहीं लिखी जा रही हैं। श्रद्धा को अमर ज्योति __गुरुदेव अपने युग के प्रकाण्ड पण्डित, कवि, प्रभावक, प्रवचनकार और यशस्वी साहित्यकार थे । जैन और अजैन जनता में उन्हे सर्वत्र एक दिव्य महापुरुप जसा सत्कार, सम्मान, प्रतिष्टा और जयजयकार मिलता था। इतने यशस्वी और महान होते हुए भी आप अपने पूज्य गुरु जनो के प्रति अटूट श्रद्धा भक्ति रखते थे। आपके समय में प्रथम पूज्य नूणकरण जी आचार्य थे। आप आचार्य श्री के अनुगासन मे रहकर उनकी वह उल्लेखनीय भक्ति और सेवा करते थे कि आचार्य श्री गद्-गद हो जाते थे। आचार्य श्री की शुभाशी आपको मुक्त-भाव से मिली और इतनी मिली कि आचार्य न होते हुए भी आपने आचार्यजैसा उच्च गौरव प्राप्त किया । आचार्य नूणकरण जी महाराज की स्तुति में आपके द्वारा बनाए गए दोहा, कवित्त और अन्य पद आपको सहज निर्मल उत्कृष्ट आचार्य-भक्ति का आज भी सप्रमाण शखनाद करते है। आचार्य श्री नूणकरण जी के स्वर्गवास के पश्चात् आपके ही अनुरोध पर सर्वसम्मति से पूज्य श्री तुलसीराम जी आचार्य पद पर आसीन हुए। आचार्य श्री की दीक्षा विक्रम संवत् १८६२ आषाढ मास मे, चरखी दादरी में हुई थी। दीक्षा मे आपसे दो ही महीने बडे थे। फिर भी आप आचार्य श्री ४३
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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