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नागौरी लोका-गच्छ श्री मनोहर-सम्प्रदाय
विक्रम स० १८३५ मार्गशीर्ष कृष्णा १०के दिन पूज्य श्री शिव रामदास जी के चरण कमलो मे दीक्षित हो गए। आपका नाम नकार और लकार के भेद से दो रूपो मे प्रचलित है-नूणकरण जी और लूणकरण जी ।
आप आगम शास्त्रो के मर्मज्ञ विद्वान थे। आपकी आगम विषयक धारणाएँ तत्कालीन साधु-संघ मे सर्वाधिक प्रामाणिक एव अबाधित मानी जाती थी। जटिल से जटिल प्रश्नो का समाधान बडी शीघ्रता से कर देने की आप मे अद्भुत क्षमता थी। आपके द्वारा साधु-साध्वियो में ज्ञान प्रचार की उल्लेखनीय प्रगति हुई। गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज ने भी आपसे आगम-साहित्य का गम्भीर अभ्यास किया था। पूज्य श्री शिवरामदास जी म. के स्वर्गवास पर आप सर्व सम्मति से आचार्य पद पर आसीन हुए । आचार्य पद पर रह कर आपने सघ का सचालन बडी योग्यता से किया। आपकी प्रवचन शैली भी सुन्दर, सरस और प्रभावक थी। आप की वचनसिद्धि के चमत्कार की गाथाएँ यमुनापार एव शेखावाटी मे काफी प्रचलित है । आपकी शिष्य परम्परा, तब से अब तक इस प्रकार है -
आचार्य श्री नूणकरण जी महाराज पूज्य श्री रामसुख दास जी महाराज तपस्वी श्री ख्यालीराम जी पूज्य श्री मंगलसेन जी
पूज्य श्री रघुनाथ जी
आचार्य श्री मोती राम जी आचार्य श्री पृथ्वीचन्द्र जी
श्री ज्ञानचन्द्र जी
श्री खुशाल चन्द्र जी
उपाध्याय श्री अमर मुनिजी
श्री अमोलक चन्द्र जी
श्री विजय मुनि
श्री सुरेशमुनि
श्री जिनेश मुनि
' पहले श्री मनोहर सम्प्रदाय के आचार्य थे, वर्तमान मे विभिन्न सम्प्रदायो के विलीनीकरण से सम्पन्न
बदमान स्थानकवासी जैन श्रमण-सघ के प्रान्त मन्त्री हैं।