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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ तपोमूर्ति श्री हरजीमलजी आचार्य श्री शिवरामदास जी के द्वितीय शिष्य तपस्वी श्री हरजीमल जी महाराज है। आपकी जन्म-भूमि मलकपुर है, जो उत्तर प्रदेश के मेरठ जिला मे बडौत के पास है बाल्यकाल से ही आपकी रुचि धर्म की ओर थी। एक बार पूज्य श्री शिवरामदास जी के गुरु भ्राता श्री मनसुख राम जी म० मलकपुर पधारे और आप के प्रवचनो से प्रभावित होकर थी हरजीमल जी ने पूज्य श्री शिवरामदास जी के चरण कमलो मे आहती दीक्षा ग्रहण की। आप उन तपस्वी, स्वाध्यायशील, एकान्तप्रिय मुनिराज थे। पिछली आयु मे सात वर्ष तक लगातार वेले-बेले पारणा किया। मास क्षमण आदि उग्र तपश्चरण की सख्या भी बहुत बड़ी है। महामहिम श्रद्धेय गुरुदेव रत्नचन्द्र जी म. और प० श्रीलाल जी म० आदि आपके अनेक शिष्य है, जिन्होने जैन धर्म के प्रचार एव प्रसार मे महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भरतपुर (राजस्थान) मे, विक्रम स० १८८८ माघ शुक्ला अष्टमी के दिन डेढ दिन का सथाराअनशन कर तपस्वीराज स्वर्गवासी हुए। तपस्वी जी की जीवन-ज्योति स्थूलदेह के रूप मे भले ही बुझ गई, परन्तु वह पवित्रता, धीरता एव सहिप्णुता की अमर-ज्योति अब भी साधना के क्षेत्र मे प्रज्वलित है। LO.
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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