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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-प्रन्थ "ऐसा क्यो"
"क्यो कि तुम्हारी आज्ञा जो खडे रहने की थी। जैन साधु, प्रदत्त आज्ञा की सीमा में ही रह सकता हैं, वाहर नही । आज्ञा से बाहर काम करना भी, हमारे यहां चोरी है।"
वात होरही थी कि आस-पास के और सज्जन भी आ गए। कहने लगे-'भाई, साधू बडे गजव के है । हमने तो इन्हे रात भर यो ही खडे देखा है ? पता नहीं, क्या बात है ?"
साक्षी मिल गई, तो वैश्य स्तब्ध रह गया। कितना पवित्र निश्चय और निर्मल जीवन । आग्रह हुआ तो महाराज ठहर गए । प्रवचन हुआ और कहा जाता है-दो-सौ से ऊपर परिवार स्थानकवासी जैन धर्म मे दीक्षित हो गए। पूज्य श्री भागचन्द्र जी के जीवन के सम्बन्ध मे इस प्रकार अनेक अनुश्रुतिया है, जो उनके कठोर त्याग, तपस्तेज और आगमानुसारी सयम साधना पर स्वर्णिम प्रकाश डालती है। प्राचार्य श्री सीतारामजी
___आप नारनौल के एक सुप्रसिद्ध अग्रवाल जैन घराने के होनहार युवक थे। सासारिक दृष्टि से जीवन सुखी था, परन्तु आध्यात्मिक शान्ति की तलाश मे पूज्य श्री भागचन्द्र जी से मुनि दीक्षा ग्रहण की। आप बहुत ही शान्त और दान्त, विवेकशील और वैराग्य-मूर्ति सन्त थे। अपने तेजस्वी गुरु के समान आपने मो शुद्ध धर्म और सस्कृति का व्यापक प्रसार किया । आपके आचार्य-पद काल में मनोहर-सम्प्रदाय ने उल्लेखनीय प्रगति की। प्राचार्य श्री शिवरामदासजी
आप दिल्ली के रहने वाले और जाति के श्रीमाल थे। आपके समय में दिल्ली राज्य क्रान्तियो के खौफनाक दौर मे से गुजर रही थी। लूटमार, हत्याकाण्ड, भागदौड, हाहाकार | पता नही, कव क्या हो जाए ? एक बार आप और आपके परिजन प्राण-रक्षा के लिए तीन दिन तक तलघर मे बन्द पडे रहे, भूखे और प्यासे । सकट की घडियां भी कभी मनुष्य की चिर-प्रसुप्त आत्म-चैतन्य को जगा देती हैं। जीवन की यह दुस्थिति देखकर हृदय मे वैराग्य-रश्मि जगमगा उठी और आपने सकल्प किया कि यदि इस सकट से वच गया, तो दीक्षा ले लूंगा। प्रतिज्ञा के अनुसार दीक्षा ली और पूज्य सीताराम जी के गिष्य हुए। आपने जैनागमो के साथ अन्य धर्म के ग्रन्थो का भी गम्भीर अध्ययन किया था। आपकी प्रवचन शैली वडी ही मधुर एव प्रभावशाली थी।
आपकी शिप्य सख्या बहुत विशाल थी, जिसके द्वारा दूर-दूर तक के प्रदेशो मे अहिंसा धर्म का व्यापक प्रचार हुआ । आपके श्री देवकरण जी, श्री रामकृष्ण जी आदि शिप्य मण्डल में पूज्य श्री नूणकरण जी और तपस्वी श्री हरजीमल जी, जिनका वर्णन आगे की पक्तियो में होने वाला है, दो प्रधान शिष्य थे। प्राचार्य श्री नूणकरणजी
___ आप सिंघाणा (जयपुर-खेतडी) के रहने वाले अग्रवाल वैश्य थे। उभरती तरुणाई मे, जब माता पिता आपको विवाह सूत्र मे वाधने के लिए प्रयत्नशील थे, वैराग्य ज्योति जगी और झूझनु (राजस्थान) मे