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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ और अपरिग्रह का अधिक प्रचार और प्रसार कर सकूँगा।" यही सोचकर आचार्य हेमचन्द्र अपनी शिष्यमण्डली को लेकर पाटण पधारे । कुमारपाल ने खभात के शासक उदयन को अपने विशाल साम्राज्य का महामन्त्री बनाया और उसके पुत्र वाग्भट को अपना अमात्य बनाया। महान् व्यक्ति कभी अपने उपकारी को भूलता नहीं है । दुर्दिनो मे की गई महानुभूति फल प्रदान करती है । फिर कुमारपाल अपने उपकारियो को कैसे भूल सकता था ? कुमारपाल एक योग्य प्रशासक था। अल्प-काल में ही उसने अपनी न्याय-प्रियता से, प्रजा-प्रेम से, और दान-दया-गीलता से प्रजा के हृदय पर भी अधिकार कर लिया । कोई भी राजा मात्र राज्य-सिंहासन पर अधिकार करने से ही राजा नही बन सकता । सच्चा राजा बनने के लिए प्रजा-जनो के हृदय को जीतना भी परम आवश्यक है। उसकी प्रजा-वत्सलता से उसकी प्रजा उस पर मुग्ध थी। उसकी दान-गीलता से और उदारता से सव लोग प्रसन्न थे। कुमारपाल सोने के राज्य-सिहासन पर ही नही बैठा था, उसने अपनी प्रजा के हृदयासन पर भी अधिकार कर लिया था। अति कठोर राजा अपनी प्रजा के प्रेम को नही पा सकता । अति मृदु राजा अपनी प्रजा पर शासन नही कर सकता। किन्तु कुमारपाल ने अनेकान्त की साधना से अपने जीवन को समन्वयात्मक बना लिया था। न्याय की रक्षा के लिए वह वच्च से भी अधिक कठोर था, और प्रजा के दुख-दर्द में वह फूल से भो अधिक कोमल था। कुमारपाल मच्चे अर्थ में राजा या। उसके राज्य की सीमाएं-महाराष्ट्र, मालवा और राजस्थान तक फैल चुकी थी, इसीलिए वह गुजरात का सम्राट् एव चक्रवर्ती कहा जाता था। क्योकि गुर्जर, सौराष्ट्र, कच्छ, सिन्ध, कर्णाटक, लाट, कोकण, कीर, उच्च, भमेरी, मरुधर, मालवा, मेवाड, अजमेर, दिल्ली, जागलक और जालघर तक उसका राज्य फैल चुका था। कुमारपाल का ये मव गुण पैतृक परम्परा से प्राप्त थे । सोलकी कुल मे कुमारपाल का जन्म हुआ । कुमारपाल के बावा का नाम भीमदेव था, जो अपने युग के प्रसिद्ध योद्धा और पराक्रमी पुरुप थे। भीमदेव का पुत्र हरिपाल, हरिपाल का पुत्र त्रिभुवनपाल, और त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल था। कुमारपाल की माता का नाम काशमीरी देवी था। काशमीरी देवी के पाँच सन्तान थी। दो पुत्रीप्रेमल देवी और देवल देवी, और तीन पुत्र-महीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल । कुमारपाल सबसे छोटा था। परन्तु उसमे अनोखा रूप था, अनोखी बुद्धि थी, अनोखा पराक्रम था, और अनोखा धैर्य था। कुमारपाल मे सुदृढ सकल्प वल था । अपनी गागरिक और मानमिक विशेपताओ के कारण ही कुमारपाल गुजरात का मम्राट् बन सका था। कुमारपाल के मन में आचार्य हेमचन्द्र के प्रति अनन्य निष्ठा, आस्था और भक्ति-भावना थी। गुरु-शिष्य की यह अमर जोडी अद्भुत और वेजोड थी। कुमारपाल की प्रार्थना पर आचार्य अनेक वार पाटण पधारे । कुमारपाल ने अपने राज्य मे अहिंसा और अनेकान्त का खूब प्रचार किया था । उसने सम्यक्त्व-मूलक द्वादश व्रत अगीकार किए थे। सात कुव्यसनो का परित्याग तो वह बहुत पहले ही कर
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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