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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
हुए वे असमजस मे ही खडे थे कि इतने में दूर से उपाध्याय श्री की दृष्टि उन पर पडी। वे उसी क्षण पट्ट से उठे और सीधे गुरु-चरणो मे जाकर झुक गए । ऐसी थी उनकी विद्या-भक्ति ।
उपाध्याय श्री की प्रतिभा के अनुरूप अल्प परिमाण में भी हम उनके समान गुण-ग्राहकता, विद्याभिरुचि तथा नम्रता के गुण का विकास कर सके, तो यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धाजलि होगी।
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