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________________ भगवान महावीर वैशाली की दिव्य-विभूति तो कभी बहुमत से चुना गया 'राजा' नामधारी अध्यक्ष अपने ही भाइयो पर उन्ही की गय से उन्ही के मगल-साधन मे सचिन्त रहता था। तात्पर्य यह है कि प्राचीन युग मे वैशाली मे राज्य-तन्त्र की प्रधानता थी । वाल्मीकि रामायण मे वर्णित है कि जब राम-लक्ष्मण के साथ विश्वामित्र ने यहां पदार्पण किया था, तब यहाँ के राजा सुमति ने उनका विशेष सत्कार किया था ।' जैन सूत्रो तथा बौद्धपिटको मे वैशाली प्रजातन्त्र की क्रीडास्थली के रूप मे अकित की गई है। भगवान् बुद्ध ने अपने अनेक चार्तुमास्य यहाँ बिताए थे। इसमे चार प्रधान चैत्य थे-पूर्व मे उदेन, दक्षिण मे गौतमक, पश्चिम मे सप्ताम्रक और उत्तर मे बहुपुत्रक । अम्बपाली नामक गणिका जो धार्मिक श्रद्धा तथा वैराग्य के कारण बौद्ध धर्म में विशेष प्रसिद्ध है-ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वैष्णव धर्म मे पिंगला-यही रहती थी। उसी का आम्रवन बुद्ध के उपदेश देने का प्रधान स्थान था। बुद्ध के समय लिच्छवि लोगो को यहाँ प्रजातन्त्र के रूप मे हम शासन करते पाते है । इससे बहुत पहले हम यहाँ महावीर वर्धमान को जन्मते, शिक्षा ग्रहण करते तथा प्रव्रज्या लेते पाते है। वर्द्धमान के समय मे भी यहाँ गणतन्त्र राज्य ही था। वैशाली के इतिहास में कोई महान् परिवर्तन अवश्य हुआ होगा जिससे वह विशाला तथा मिथिला दोनो राज्यो की राजधानी बन गई तथा उसका शासन राज्यतन्त्र हो गया । इस परिवर्तन के कारणो की छानबीन करना इतिहास प्रेमियो का कर्तव्य है। वैशाली मे अनेक विभूतियों उत्पन्न हुई । परन्तु उनमे सबसे सुन्दर विभूति है-भगवान् महावीर जिनको प्रभा आज भी भारत को चमत्कृत कर रही है । लौकिक विभूतियां भूतलशायिनी बन गई, परन्तु यह दिव्य विभूति आज भी अमर है और आने वाली अनेक शताब्दियो मे अपनी शोभा को इसी प्रकार विस्तार करती रहेगी । बौद्ध धर्म से जैन धर्म बहुत पुराना है। इसका सस्थापन भगवान् ऋषभदेव ने किया था, जैनियो की यही मान्यता है । तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ वस्तुत ऐतिहासिक पुरुष है। वे महावीर से लगभग दो सौ वर्ष पहले हुए थे। वे काशी के रहने वाले थे। महावीर ने उनके धर्म मे सशोधन कर उसे नवीन रूप प्रदान किया। भारत का प्रत्येक प्रान्त जैन धर्म की विभूतियो से मण्डित है। ऐतिहासिक लोग पार्श्वनाथ को जैन धर्म का सस्थापक मानते है, और वर्धमान महावीर को सशोधक । महावीर गौतम बुद्ध के समसामयिक थे, परन्तु बुद्ध के निर्वाण से पहले ही उनका अवसान हो गया था। इस प्रकार वैदिक धर्म से पृथक् धर्मों के संस्थापको मे महावीर वर्धमान ही प्रथम माने जा सकते है और इनकी जन्म-भूमि होने से वैशाली की पर्याप्त प्रतिष्ठा है। १ तस्य पुत्रो महातेजा सम्प्रत्येष पुरीमिमाम्। आवसत्यमरमरूप. सुमति म दुर्जय ॥१६॥ सुमतिस्तु महातेजा विश्वामित्रमुपागतम् श्रुत्वा नरवरष्ठः प्रत्यगच्छन्महायशा ॥१९॥ २ द्रष्टव्य दीघनिकाय-महापरिनिव्बाणसुत्त --१३ बालकाण्ड ४७ सर्ग ४२१
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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