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भगवान महावीर : वैशाली की दिव्य-विभूति
श्री वलदेव उपाध्याय एम० ए० साहित्याचार्य प्रोफेसर सस्कृत-पाली विभाग हिन्दू-विश्य विद्यालय काशी
वंशाली युगान्तरकारिणी नगरी है। इसकी गणना भाग्न को ही प्रधान नगरियों में नहीं की जा सकती, प्रत्युत ससार की कतिपय नगरियो में यह प्रमुग है-उन नर्गाग्यो में, जहा गे धर्म की दिव्य ज्योति ने दम्भ तथा कपट के घनं काले अन्धकार को दूर कर विश्व के प्राणियों के मामन मगनमय प्रभात का उदय प्रस्तुत किया, जहाँ मे परम्पर विवाद करने वाले, कणमात्र के लिए अपने वन्धुजनों के प्रिय प्राणहरण करने वाले कर मानवो के मामने पवित्र भ्रातृभाव की शिक्षा दी गई, जहा में "अहिंसा परमो धर्म." का मन्त्र ससार के कल्याण के लिए उच्चारित किया गया। पाश्चात्य तिहाग उन नगर्ग को गौरव-गाथा गाने में तनिक भी श्रान्त नहीं होता, जिनमे प्राणियों के रक्त को धारा पानी के समान वही और जिसे वह भग्य फेरने वाले युद्धो का रगस्यल बतलाता है। परन्तु भारत के इस पवित्र देश में वे नगर हमारे हृदय पट पर अपना प्रभाव जमाए हुए हैं, जिन्हे किमी धार्मिक नेता ने अपने जन्म से पवित्र बनाया तथा अपने उपदेशो का लीला नगर प्रस्तुत किया। वैशाली एमी नगरी में अन्यतम है । इमे ही जैन धर्म के सशोधक तथा प्रचारक महावीर वर्धमान की जन्म-भूमि होने का विशेष गौरव प्राप्त है। बौद्धधर्मानुयायियो के हृदय में कपिलवस्तु तथा कम्मिन के नाम मुनकर जो श्रद्धा और आर का भाव जन्मता है, जैन मतावलम्बियो के हृदय मै ठीक वही भाव वैशाली तया कुण्डग्राम के नाम सुनने से उत्पन्न होता है।
वैशाली के इतिहास मे बडे-बडे परिवर्तन हुए । उसने बडो राजनीतिक उथल-पुथल देसी । कभी वहाँ की राजसभा मे मन्त्रियो की परिपद् जुटती थी, तो कभी वहाँ के सस्थागार में प्रजावर्ग के प्रतिनिधि राज्यकार्य के सचालन के लिए जुटते थे । कभी वशानुगत राजा प्रजाओ पर शासन करता था,
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