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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति ग्रन्थ
किन्तु जैनो ने अपनो प्रचार लगन को भुलाया नहीं । गन् ६६८ ६० के लगभग भारत में करीब वीस साधु सन्यासियो का दल पश्चिम एशिया के देशो मे प्रचार करने के लिए गया। उनके साथ जैन त्यागी भी गए, जो चिकित्सक भी थे। इन्होंने अहिंगा का सागा प्रचार उन देशों में किया। तत्पश्चात् वे वापस स्वदेश लोटे | किन्तु वे अपने पीछे इतने भक्त छोड़ आए थे कि वे उनको भुला न सके । सन् १०२४ के लगभग यह दल पुन शान्ति का सन्देश लेकर विदेश गया और दूर-दूर की जनता को अह्गक बनाया। जब यह दल स्वदेश लौट रहा था तो उसे अरव के तत्वज्ञानी कवि अबुल अला अल-मआरी से भेंट हुई । जर्मन विद्वान फान क्रेमर ने अबुल अला की सर्व श्रेष्ठ गदानारी शास्त्री और मत कहा है। वह गुरु की खोज मे घूमने घामते जब बगदाद पहुँचे, तो बगदाद के जैन दार्शनिकों के साथ उनका गमागम हुआ था और उन्होने जैन शिक्षा ग्रहण की थी । उसका परिणाम यह हुआ कि अबुल अला पूरे अहिंसावादी योगी हो गए। "
अलअला केवल अन्नाहार करते थे। दूध भी नहीं लेते थे, क्योकि बछडे के दूध को लेना यह पाप समझते थे । बहुधा वह निराहार रहकर उपवास करने थे । मधु (शहद) व जड़ा भी नही सान थे । पगरखी लकडी की पहनते थे । चमरे का प्रयोग नहीं करते थे। नगे रहने की मराहना करते थे । सचमुच यह दया की मूर्ति थे ।
अरब मे ही उपरान्त इम्लाम के महान् प्रर्वतन हजरत मुहम्मद गा० हुए। उन्होंने भी अहमक बताया। वह कहने थे कि "भूक पशुओ की सातिर करो। उप भूमडल पर बोई भी पशु या पक्षी ऐसा प्यार न करता हो। इसलिए कहा है कि खुदा ने (अलशमगत जकानम्) हजरत मुहम्मद
जीवन को अपनाया और रहम (दया) करना धर्म अल्लाह से डरो और उनके प्रति नेकी का व्यवहार नही है, जो कि तुम्हारे समान ही अपने प्राणो से तुम लोगो के रज्क के लिए मेवा व फल अता किया है।" सा० स्वय शाकाहारी थे और उनका व्यवहार जीवमात्र के प्रति दयामय था । एक बार वह वन से गुजर रहे थे कि उनको एक शिकारी मिला, जिसने एक हिरनी को पकड रसा था । पैगम्बर सा० मानव की क्रूरता देख कर दंग रह गए। उन्होंने कहा, "यह बुरा है, मानव पशु बने । इसमे ज्यादा उसका पतन क्या होगा ?" और शिकारी को हिरणी को छोड़ने के लिए कहा, जिसमे वह अपने बच्चों को दूध पिता आवे । शिकारी तैयार न हुआ तो पैगम्बर सा० ने अपने को जामिन बनाया और हिरणी को छोड दिया । हिरणी गई, बच्चो को दूध पिलाया और लौट आई। शिकारी यह देखकर हैरान था । हैवान भी उतने सच्चे होते हैं और इन्सान इतना बेवफा । वम, रहम का मोता शिकारी के दिल मे फूटा-उसने शिकार न करने के लिए तोबा की । वह सच्चा मानव बना-
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हुकुमचंद अभिनन्दन ग्रथ, पृ० ३७४ ३७५
Der jainismus.
कुरान ६१३८
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