SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि रमृति ग्रन्थ अतर मे धन की आकाक्षा नही के बराबर है । जिग गम्पत्ति को में अपनी आवश्यकता से अधिक पाता हूँ, उसे अपने मित्रो को अर्पण करता हूँ। मुख्यत में अपने गनुओ में गम्पत्ति वाटता है। जिसने ये नान्त रहे ।” जब अपोलो ने उसके भोजन के विषय मे पूछा तो वाह ने बताया, कि पहले वह मद्यपान करता था, किन्तु अब नही । पहले शिकार भी गेलता था, किन्तु अब वह व्यायाम मे ही गतुष्ट है। वह भोजन मे शाकभाजी और पिडसजूर की रोटी तथा बाग के फनी पर निर्धार करता है। कुछ नाकभाजी वह स्वयं जोत वोकर उगाता है। अपोलो को इनसे बड़ा सतीष हुआ ।' नागण यह कि उग काल में वडे-वडे राजा महाराजा भी अहिंगा और अपरिग्रह के सिद्धान्तो को पालते थे । जव मिकन्दर महान भारत आया और तक्षविला के पान दिगम्बर जैन मुनियों ने गिला, सो उनकी ज्ञानचर्या और तपस्या का उसके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा था। कल्याण नामक मुनि निकन्दर के साथ अहसा प्रचार के लिए हो लिए थे। सन् २५ ई० पूर्व मे भृगुकच्छ के राजा ने रोग के बादशाह आगम्टग के लिए भेट भेजी थी । उनके राजपूत के माथ भृगुकन्छ के दिगम्बर श्रमणाचार्य यूनान गए थे । उन श्रमणानार्य ने एथेन् (Athans) नगर मे अपने सघ की स्थापना की थी— बहुत मे यूनानी उनके शिष्य होकर महिमा और अपरिग्रह का पालन करते थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि यूनान को मस्कृति में अहना और अपरिह का नत्रिय प्रभाव रहा है-जैन मुनियो ने अपने जान से यूनानियों को प्रभावित किया था । एस्सेन लोगो ( Essens) को श्रहिंसक सभ्यता - फिलिस्तीन और इमरायल यहूदी गभ्यता के गढ़ रहे हजरत मूमा ने वहा अहिमा का प्रचार किया था, यह पहले दर्गा चुके हैं। किन्तु कालान्तर में वहां अदनामे का मही अर्थ लोगो को दृष्टि मे भोकल गया था - वामना में फँस गए थे। इन विगम गमय में मध्य एशिया में प्रचार करने हुए भारतीय सन्त इस प्रदेश में भी आए थे और अहिंगा का प्रचार किया था। जर्मन विद्वान वफॉन क्रेमर ( Von Kreme1) के अनुसार मध्यपूर्व एशिया में प्रचलित "ममानिया" सम्प्रदाय "श्रमण" (जैन ) था । जी० एफ० मूर ने लिखा है कि "ईसा की जन्म शती के पूर्व इराक, नाम और फिलिस्तीन मे जैनमुनि और atafir inst की सख्या मे चारो ओर फैलकर अहिंसा का प्रचार करते थे। पश्चिमी एशिया, मिस्र, यूनान और इथ्योपिया के पहाटो ओर जगलो मे उन दिनो अगणित भारतीय साघु रहते थे, जो अपने त्याग और अपनी विद्या के लिए प्रसिद्ध थे । वे साघु वस्त्र भी नही पहनते थे । मेजर जनरल जे० जी० १ "न्यू आउटलुक'" (लास ऐंजिलस USA) दिसम्बर १९६१ मे पृ०७३-७६ देखो अहिंसा और उसका विश्वव्यापी प्रभाव, पृ० ७३-७४ 8 इंडियन हिस्टॉरिकल क्वारटलों, भा० २ ०२६३ Y हुकुमचन्द अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ३७४ ४१०
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy