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________________ विदेशी संस्कृतियो मे अहिंसा किया था, जिसका प्रभाव जनता पर पड़ा था। डियोजेनेस ने भी अध्यात्मवाद और अहिंसा को फैलाया था। प्लेटो (Plato) (४२७-३४७ ई० पू०) को भारतीय अफलातून कहते है । वह सुकरात का शिष्य था । अन्त मे वह पिथागोरस के सघ मे सम्मिलित होकर अहिंसा का प्रचार करने लगा था। प्लेटो ने बताया था कि मानव सीधा सादा जीवन यापन करे-प्रकृति का होकर रहे । उन्होने लोगो को शिक्षा दी कि "मानव जी और गेहूँ से अपनी भूख को शमन करे-गेहूँ के आटे की रोटी और हलुआ बनावें। शाक, फल और नमक खावें । इस प्रकार का आहार करके मानव दीर्घकाल तक शाति से वृद्ध-जीवन का उपभोग कर सकता है और अपनी सतान को सुखी जीवन उत्तराधिकार मे देता है।' इपीक्यूरस (३४२-२७० ई० पू०) पर भी अहिंसा का प्रभाव था । वह सृष्टिकर्तृत्ववाद को नही मानता था । अणुवाद के आधार पर सृष्टि को अनादि मानता था । जीव का अस्तित्व प्राणी मात्र मे उसे स्वीकार था। उसकी भी यह मान्यता थी कि आदि काल का मानव यद्यपि मेहनती और जगली था, परन्तु वह अपना जीवन निर्वाह वनस्पति और फल खाकर करता था-वह खुले मैदान मे सोता था। परिस्थिति के अनुसार वह सभ्य बना । इपीक्यूरस स्वय शाकाहारी था, वह रोटी खाता और पानी पीकर रहता था । रोटी भी वह साथियो के साथ वाटकर खाता था । इस प्रकार वह शाकाहार का प्रचार सक्रिय रूप मे करता था। अपोलो और दमस नामक दो तत्त्ववेत्ता भी यूनान से भारत आए थे । उन्होने निर्ग्रन्थ श्रमणो ( जैनो ) से ज्ञान चर्चा की थी और अहिंसा का महत्व समझा था । अपने देश को वापस जाकर उन्होने अहिंसा का प्रचार किया था । मार्ग मे वह शाह फाउतेस (Phi aotes) के अतिथि रहे थे। शाह फाउतेम यद्यपि एक महान् समृद्धिशाली शासक था, परन्तु उसका रहन-सहन सीघा-सादा था। जब अपोलो ने शाह के सीधे सादे जीवन व्यवहार की सराहना की तो शाह ने उत्तर मे कहा-मैं धनवान हूँ, पर मेरे + Encyclopaedia Britannica, Vol XI P753 एव 'अहिंसा और उसका विश्व-व्यापी प्रभाव (अलीगज), पृ०७२ २ The story of philosophy (New york) p. 1g. 3 "Man bardy and savage and naked he roamed over the earth like the other animals living on herbs and fruits and acorns and sleeping in open fields at night." -Great philosophers (Bombay) p. 37. Y Epicurus had a genius for, friendship. Though he lived on bread and water he always tried to break his bread in the company of a friend." Ibid, p. 40. ४०६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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