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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ हितित संस्कृति मे यहदियो और वैवीलोनिया के निवासियो के पडोगी हित्तित जाति (Ittites) के लोग थे, जिनका उल्लेख पुराने अहदनामे में है और जिनकी अपनी निराली गस्कृति थी। मिथवागी उनको "गेल देशवासी" कहते थे ।' वैसे इनका देश हत्ति (ITatti) कहलाता था। भारतीय धर्मों का उन पर प्रभाव पडा हो, तो आश्चर्य नही । इनका मुरय देव "ऋतुदेव" (Weather-God) कहलाता या जिनका वाहन बैल था। उनके साथ बैल भी पूजा जाता था। उनका नाम "तेशुव" (Teshulb) था और उनकी सिंहवाहिनी देवी हेवत थी । शब्द तेशुव मभव है "तित्ययर उसम" का अपभ्रम हो, क्योकि प्रो० हाँ ने ऋपम को ही रेशेफ (Reshef) और तेशुव सिद्ध किया है। हित्ति लोगो में भी अहिंगा और हिमा का सघर्ष चला था । उनका एक त्यौहार हिंसक और अहिंमक युद्ध का द्योतक रहा, जिगम एक पक्ष के युवक "हित्तिजन" शस्त्रास्त्र से सज्जित-होते थे और दूसरे पक्ष के युवक "मम जन" ग्याम्प के स्थान पर सेटो को लेते थे। दोनो का युद्ध होता था । हत्तिजन विजयी होते थे। परन्तु उम प्रकार हिगालिप्त होने का परिणाम हत्तियो के लिए अच्छा नहीं निकला था। इसीलिए उनके बादशाह लवरनम (Labarnas) को अपने उत्तराधिकारी पुत्र मुरसिलिस (Mustis) से बाहना पड़ा था, कि अभी तक मेरी (अहिमा परक) आज्ञा को मेरे कुल के किसी भी व्यक्ति ने नहीं माना है, किन्तु अब तुम मेरे बेट हो, मो मेरी आज्ञा मानना । तुम रोटी खाना और पानी पीना । मास मत साना, मदिग मत पीना । अपने सिपाहियो से भी उन्होने यही कहा कि वे रोटी खावे व पानी पीवें, ऐमा करेंगे तो उनका देश महान होगा और शान्ति बरतेगी। ये कुछ ऐसे उल्लेख है, जो हत्ति-सस्कृति में भी अहिमा का अस्तित्व प्रगट करते है। इम दिशा मे अधिक खोज करने की आवश्यकता है । मिश्र देश की संस्कृति और अहिंसा मिश्र देश के सास्कृतिक सम्पर्क सुमेरु के लोगो से विशेष थे-वे सुमेरु सस्कृति से प्रभावित रहे । सुमेरो की तरह उनके पूर्वज भी भारतीय थे। सभवत वै प्राइ आयंकाल के पणिक थे, जो दूर दूर देशो से व्यापार करते थे। वे मिश्र देश भी पहुंचे थे। भारत मे पणिक लोग जैन धर्म के प्रभाव में रहे थे । अत वे लोग अहिंसाधर्म को मिश्र ले गए । यूनानी लेखक हेरोडोटस ने लिखा है कि अवीसिनिया, 10. R. Gurncy, The Hittites (Peticaned), PP. 15-50 ? Idid PP 134. 30. R.Gurney, loc, P. 155 Abid pp. 111-173. महावीर जयन्ती स्मारिका, १९६३, पृ०५०
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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