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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
उल्लेख जो प्रोपध (Sabbath) के दिनो की चर्या का निर्देग द्वितीय अलूल व अरहणम्म नामक शारयाधार से करता है, इस प्रसग मे अर्यमूचक है
___ "(प्रोपध को) अनेक कुलो के पुरोहित कोयलो पर पका माग नहीं साएंगे और न ही भुनी हुई रोटी । वे अपने कपडे नही बदलेंगे और नए वस्त्र नही पहनेंगे । वह कोई भी पशु-बलि नहीं चढावेंगे राजा अपने रथ पर नही चढेगा और न गज्यादेश देगा। रहस्यवाद के म्यल पर भी वह मौन रहेगा। यह दिन किसी प्रयोजित कार्य को करने के लिए उचित नहीं है।''
जन प्रोपध में भी सभी प्रकार के हिमामय आरम्भ मे दूर रहन का विधान है। वहीं भाव उपरोक्त लेख मे भी है । वैवीलोनियन मन का नाम उरफजिन और शास्त्र का नाम अहंगम्म अयं-मूषक एव भारतीय प्रभाव के द्योतक है। यहूदी-संस्कृति
सुमेरु लोगो का पाटनगर "उर" (Li) भी भारतीयता का प्रतीक है । अपभ्रग प्राकृत में नगर के अर्थ मे पुर "उर" कहलाता है। इसी उर नगर में यहूदि सस्कृति के आदि पुरुप अग्राहम (Anaham) अवतरित हुए थे। ई० पूर्व २२०० के लगभग अग्राम और उनके अनुयायी सुमेरिया मे चले और फिलिस्तीन में बस गए । चालीस वर्षों तक वह मिश्र और महारा के रेगिस्तान में चक्कर काटते रहे थे । आखिर उनको मूसा जैसे सन्त (St_loses) का नेतृत्व मिला। मिश्र (Lgspt) उम समय ऐश्वयं के शिखर पर था। इजरायली लोग वहां के वासनामय जीवन में फैम गए थे । सन्त भूसा उनको समझा बुझा कर अपने देश को लाए। उन्होंने मास मदिरा की अनुमति ले ली थी, तभी वह मिश्र छोड़कर चले । मार्ग में उन्होंने मामादि जो पाया, तो उममे विसूचिका मदन महामारी फैली, जिससे घबडाकर उन्होंने तोवा किया और सन्त मूमा की शरण में आकर अहिमा के अनुयायी बने ।' सन्त मूसा ने धर्म की जो दम आनाएँ निकाली, उममे निम्नलिखित अहिंसा को आगे बढाने वाली रही
१ तू हत्या नहीं करेगा (Thou shalt not kill) २ तू चोरी नहीं करेगा (Thou shalt not stcal) ३ तू अपने पडौसी की कोई चीज नही लेगा (Thou shalt not lovet anything that
is thy neighbour's)
'इंडियन हिस्टोरीफल कारटली, भा० १३ (सित० १९३६) पृ० ३८४ से उद्धत
Glimpses of World Religions (Jaico), p. 146. * HG Wells, A short History of the World, pp. 72-73. * A White, Why I do not eat Mcat, pp. 69-77 (Num, II, 19-20)
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