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________________ गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति ग्रन्य जर्मन विद्वान ने उनको भारत के मौराष्ट्र से माया मिद किया था और उनको "मु" जाति का बताया था। ये "सु" लोग जैन धर्मानुयायी थे।' भ० ऋपम यो साले मु-कच्छ मीराष्ट्र के थे। ___उनके पुत्र-नमि-विनमि द्वारा विद्याधर-यण को स्थापना हुई। इन सु-जातीय विद्याधरी के द्वाग भ० ऋषभ प्रणीत अहिंसा का प्रमार देश-विदेश में हुआ था। किन्तु किन्ही अन्य विद्वानो का मत है, कि मुमेर लोगो के पूर्वज सिन्यु उपत्यका मोहनजोदो और उन्नुदगे में वहा पहुँचे थे और द्राविट थे ।' जो हो, ये द्राविड भी भ० ऋषभ के भक्त और अहिंसक थे। उन्ही लोगों ने जलमार्ग से जाकर सुमेर को आवाद किया था । अलकृत रूप में कहा गया है, कि ओअग्नम के नेतृत्व में गगे लोग समुद्र में आए जिनका गिरोभाग मनुष्य का और अधोभाग मछली का था। ऐसे मनुष्यों को जैन गाम्नी में 'अन्तद्वीपज कहा गया है। किन्तु विद्वज्जन उनको नाविक मानते है। भारत से आए हुए इन 'सु' अवथा द्राविट लोगों ने अपने नये देश का नाम भी अपनी जाति और धर्म को लक्ष्य करके रक्या । "मु" जाति को धार्मिक मान्यता में मैग के जिनालयों की पूजा का विशेष महत्व रहा-इसीलिए उन्होंने अपने नये देश का नाम "सुमेर" रक्या और अपने अहिंसा धर्म के अनुसार अपने मामाजिक जीवन का निर्माण किया । वे जीवरक्षा करना परम धर्म मानते थे। जैनो की तरह उनका भी विश्वास था, कि आदि काल में मानव और पशु गाय-नाथ प्रेम में रहते, फल और घास खाते तथा तालावो का पानी पीते थे। मेमोपोटामिया में प्राप्त ई० पूर्व ३५०० के गिलालेखो मै यह विवरण उत्कीर्ण किया हुआ है ।' मुमेर लोग वृपभदेव को कृषि का देवता कहकर पूजते थे-वृपभ का अनुवाद आजकल Buil (बैल) किया गया है, जो भ० ऋपभ का चिन्ह था । पौषधन्नत भी पालते थे, जो वाद मे Sabbath कहलाया । सुमेर एव बावुल के लोगो का एका धर्मगाम्य "अहंगम्म" 4 "विशालभारत" कलकत्ता भा० १८ प्रफ ५ पृ० ६२६ पर प्रकाशित" सुमेर सभ्यता को जन्मभूमि शीर्षक लेख देखिए २ आदि तीथंडुर भ० ऋषभदेव, पृ० ६९-७० 3 "Some hold that they (People of Indus Civilisation) were the same as the Sumerians, while others hold that they werc Dravidians. Some again believe that these two were identical. According to this view, the Dravidians at one time inhabited the whole of India, including the Punjab, Sind and Baluchistan. and gradually, migrated to Mesopotamia." - Ancient India (An Advanced History of India Pt. I) by Majumdas, Ray-chaudry & K.K. Dutta. p. 55 * अहिंसावाणी का भ० ऋषभदेव विशेषाक y Dui act Our Oriental Heritage (the Story of Civilisation) P. 131.
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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