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________________ विदेशी संस्कृतियो मे अहिंसा थे।' उपरात बाहरी आसुरी प्रभाव ऐसा पडा, कि पशु होमने की कुप्रथा भी चल पडी "महाभारत" (शान्तिपर्व अ० ३३६) मे वर्णित कथा से यही प्रमाणित होता है। बौद्धो के 'सुत्तनिपात' (ब्राह्मण धम्मक सुत्त S BE Vo, , Pt. II, pp. 47-52 ) से भी इसी बात की पुष्टि होती है, कि आदिकाल का मानव अहिंसोपजीवी था, इसीलिए यहाँ सुख-समृद्धि थी। किन्तु जब मानव ने अहिंसा का उल्लघन करके पशु होमकर मास मदिरा का सेवन किया, तभी से मानवो का ह्रास हुआ और वे दुखो की भट्टी मे पडे । आधुनिक मान्यता यही है, कि बाहर से जो आर्य आए वे अहिंसा को महत्व नही देते थे। उनके कारण अहिसा और हिंसा का द्वन्द्व चला था। परिणाम स्वरूप प्रागार्य भारत की अहिंसा-प्रधान सस्कृति का प्रभाव उन पर पड़ा था। किन्तु बाहर से आए हुए इन लोगो के पूर्वजो की मान्यता भी अहिंसा से रिक्त नहीं मिलती। विदेशो मे अहिंसा का प्रसार सुमेर, वावुल, ईरान, मिश्र आदि देशो की आदि सस्कृतिया अहिंसा सिद्धान्त पर ही आधारित थी और इन देशो मे अहिंसा का प्रसार करने वाले भारतीय ही थे-यह तथ्य आगे के विवेचन से स्पष्ट होगा । किन्तु जव उपरोक्त देशो मे असुरो के प्राबल्य के कारण आसुरी वृत्ति बढी, तभी अहिंसा का ह्रास उपरोक्त देशो मे हुमा और पशु-बलि की प्रथा चल पडी । भारत से पहले ही वहाँ हिंसा अहिंसा का द्वन्द्व चला प्रतीत होता है । जो हो, निस्सन्देह यह मानना पडेगा, कि विश्व मे अहिंसा का प्रसार पहले-पहल भारत से हुआ था । सुमेर और बाबुल की संस्कृतियो में हिसा मध्य एशिया की संस्कृतियो मे सुमेर (Sumeria) की सभ्यता सर्व प्राचीन मानी गई है। विद्वानो का यह भी मत है, कि सुमेरु सस्कृति और सभ्यता के सृजक पूर्व से उस देश मे पहुंचे थे। एक १ अथर्ववेद ७१५-१ २ कौशाम्बी कृत "भारतीय संस्कृति और अहिंसा" देखिए। "One thing however is certain & can no longer be contested-civilisation did not come to India with the Aryans... How this (pre-Aryan) civilisation was absorted by the Aryans is not known to us That was not destroyed & did not wholly disapper is clear from the survival of the ludus velly religions ideas in the Hinduism of to day." -K.M Panmhar "A Survey of Indian History' pp4-5
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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