SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत-भापा का एक मात्र आलकारिक ग्रन्थ अलकार-दर्पण उवमा रुवउ दीवा रोहाणप्पास अइस अ विसेस । अक्खेव जाइ वइ रेअ, रसिम पन्जाम भणि आगो ॥५॥ संस्कृत-छाया सुन्दर-पद-विन्यास विमलालड कार-शोभित शरीरम् । श्रुति-देवता च काव्य च प्रणम्य प्रवर-वर्णाढयम् ॥१॥ सर्वाणि काव्यानि श्रव्याणि चव भवन्ति भव्यानि । तमलड कार भणामोऽलइ कार कु-कवि-काव्यानाम् ॥२॥ अत्यन्त सुन्दर मपि खलु निरलह कार-जने । कामिनी-मुखमिव काव्य भवति प्रसन्नमपिविच्छायम् ॥३॥ तज् ज्ञात्वा निपुण बहु-विधान लड काराणि । पैरलड कृतानि बहु मन्यन्ते काव्यानि ॥४॥ उपमा-रूपक-दीपक-रोपानुप्रास-अतिशय-विशेष । आक्षेप-जाति-व्यतिरेक-रसिक-पर्याय-भणिता. ॥५॥ उपमा लक्षण की समाप्ति पर बहुहा वि अपि उवमा जहासूरम्मि दाव जल सन्च बोलिउ गहमर सव पच्छिम सिणि अरेण व तमेण कसिणी कल सउस (लं) ४० उवमा-लक्खण समत्तं । मध्य घण्णाणुप्पासो जहाबामन्ति सजल-जल-हर जल-लव स वलणसी अलप्फसा । फुल्ल घुम धुकुसुम छलत गघु दुरा पवणा ॥५३॥ जत्थ णिमित्ता हिन्तो लोआ एक्कन्त-गोमर वाण । विरहन्नइ सो तस्स म अइसउ-णामो अलंकारो ॥५४॥ ३६७
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy